NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न. 1.
लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?
उत्तर:
‘गानपन’ का शाब्दिक अर्थ है-वह गायकी जो एक आम इनसान को भी भाव-विभोर कर दे। वास्तव में, यह कला लता जी में है। गीत को गाने में मन की गहराइयों से भाव पिरोए जाएँ, यही उनका प्रयास रहता है। इस प्रयास में उन्हें काफ़ी हद तक सफलता भी मिली है। जिस प्रकार एक मनुष्य के लिए ‘मनुष्यता’ का होना जरूरी है, उसी प्रकार संगीत के लिए गानपन होना बहुत ज़रूरी है। लता जी की लोकप्रियता का मुख्य कारण यही गानपन है। यह गुण अपनी गायकी में लाने के लिए गायक को भरपूर रियाज़ करना चाहिए। साथ ही गीत के बोल, स्वरों के साथ-साथ भावों में भी पिरोए जाने चाहिए। गानों में गानपन के लिए स्वरों का उचित ज्ञान के साथ-साथ स्पष्टता व निर्मलता भी होनी चाहिए। स्वरों का जितना स्पष्ट व निर्मल उच्चारण होगा, संगीत उतना ही मधुर होगा। रसों के अनुसार उनकी लयात्मकता भी होनी चाहिए। स्वर, लय, ताल, उच्चारण आदि का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर उनको अपने संगीत में उतारने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न. 2.
लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नज़र आती हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है

  1. सुरीलापन – लता के गायन में सुरीलापन है। उनके स्वर में अद्भुत मिठास, तन्मयता, मस्ती, लोच आदि हैं। उनका उच्चारण मधुर पूँज से परिपूर्ण रहता है।
  2. निर्मल स्वर – लता के स्वरों में निर्मलता है। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गायन की निर्मलता में झलकता है।
  3. कोमलता – लता के स्वरों में कोमलता व मुग्धता है। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में मादक उत्तान दिखता था।
  4. नादमय उच्चार – यह लता के गायन की अन्य विशेषता है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा सुंदर रीति से भरा रहता है। ऐसा लगता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल | जाते हैं। लता के गानों में यह बात सहज व स्वाभाविक है।
  5. शास्त्रीये शुद्धता – लता के गीतों में शास्त्रीय शुद्धता है। उन्हें शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी है। उनके गीतों में स्वर, लय व शब्दार्थ का संगम होने के साथ-साथ रंजकता भी पाई जाती है।

हमें लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती हैं। उन्होंने भक्ति, देशप्रेम, श्रृंगार, विरह आदि हर भाव के गीत गाए हैं। उनका हर गीत लोगों के मन को छू लेता है। वे गंभीर या अनहद गीतों को सहजता से गा लेती हैं। एक तरफ ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से सारा देश भावुक हो उठता है तो दूसरी तरफ ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे’ फ़िल्म के अल्हड़ गीत युवाओं को मस्त करते हैं। वास्तव में, गायकी के क्षेत्र में लता सर्वश्रेष्ठ हैं।

प्रश्न. 3.
लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं। इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
लेखक का यह कथन पूर्णतया सत्य नहीं प्रतीत होता। यह संभव है कि किसी विशेष चित्रपट में लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया हो, किंतु सभी चित्रपटों पर यह बात लागू नहीं होती। लता ने कई चित्रपटों में अपनी आवाज़ दी है तथा उनमें करुण रस के गीत बड़ी मार्मिकता व रसोत्कटता के साथ गाए हैं। उनकी वाणी में एक स्वाभाविक करुणा विद्यमान है। उनके स्वरों में करुणा छलकती-सी प्रतीत होती है। फ़िल्म ‘रुदाली’ में उनका ‘दिल-हुँ-हुँ करे…….’ गीत विरही जनों के हृदयों को उत्कंठित ही नहीं करता अपितु अपनी मार्मिकता से हृदय को बींध-सा देता है। इसी प्रकार अन्य। कई चित्रपटों पर भी यह बात लागू होती है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि लता जी केवल श्रृंगार के गीत ही भली प्रकार गा सकती हैं। वे सभी गीतों को समान रसमयता के साथ गा सकती हैं।

प्रश्न. 4.
संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है, तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं-इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संगीत शास्त्र बहुत प्राचीन है। इसमें वैदिक काल से ही नाना प्रकार के प्रयोग होते रहे हैं। इतनी प्राचीन परंपरा होने के कारण उसका क्षेत्र भी बहुत विशाल हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति भी बहुरंगी संस्कृति है। इसमें केवल भारतीय ही नहीं अपितु विदेशों से आने वाली संस्कृतियों का भी समावेश समय-समय पर होता रहा है। आज भी संगीत में नए-नए प्रयोग होते देखे जा सकते हैं। शास्त्रीय व लोकसंगीत की परंपरा आज भी निरंतर चल रही है, किंतु उनमें नाना प्रकार के प्रयोग करके संगीत को नया आयाम आज की फ़िल्मों में दिया जा रहा है। फ़िल्मों में गीत-संगीतकार कुछ-न-कुछ नया करने का प्रयास पहले से ही करते आए हैं। आजकल के फ़िल्मी संगीत पर भी यह बात लागू होती है। कभी इसमें पॉप संगीत का मिश्रण किया जाता है तो कभी सूफी संगीत का तथा कभी लोक संगीत का। लोक संगीतों में भी अनेकानेक प्रांतों के संगीत को आधार बनाकर नए-नए गीतों की रचना कर उन पर संगीत दिया जाता है। इसका फ़िल्मकार लोग बहुत जोर-शोर से प्रचार भी करते हैं। इस प्रकार वर्तमान फ़िल्मी संगीत में भी नए प्रयोगों के माध्यम से संगीत का विस्तार हो। रहा है।

प्रश्न. 5.
‘चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए’-अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।
उत्तर:
शास्त्रीय संगीतकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग हमारे देश में रहता है। शास्त्रीय संगीत की परंपरा बहुत प्राचीन व उत्कृष्ट है। शास्त्रीय संगीत में प्रत्येक राग के अनुसार स्वर, लय, ताल आदि निश्चित होते हैं, उनमें थोड़ा-सा भी परिवर्तन असहनीय होता है। लोक संगीत या फ़िल्मी संगीत स्वर, लय, ताल आदि के संबंध में इतना सख्त रवैया नहीं रखता। इसमें जो भी श्रोताओं को आह्लादित करे, वही श्रेष्ठ समझा जाता है। इसे सीखने के लिए भी शास्त्रीय संगीत की तरह वर्षों के अभ्यास की जरूरत नहीं होती। शास्त्रीय संगीत के आचार्य चित्रपट या फ़िल्मी संगीत पर यह दोष मढ़ते रहते हैं कि उसने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं; अर्थात् उसके कारण लोगों को केवल कर्णप्रिय धुनें सुनने की आदत पड़ गई है।

इस विषय में कुमार गंधर्व का मत है कि वस्तुतः फ़िल्मी संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं अपितु सुधारे हैं। आज फ़िल्मी संगीत के कारण एक साधारण श्रोता भी स्वर, लय, ताल आदि के विषय में जानकारी रखने लगा है। लोगों की रुचि संगीत में बढ़ी है। शास्त्रीय संगीत के काल में कितने लोग संगीत का ज्ञान रखते थे? कितने लोग उसके दीवाने होते थे? अर्थात् बहुत कम। आज लोग केवल फ़िल्मी संगीत ही नहीं शास्त्रीय संगीत की ओर भी मुड़ने लगे हैं। यह भी फ़िल्मी संगीत के कारण ही संभव हुआ है। हमारा मत भी कुमार गंधर्व से मिलता है। हमारा भी यही मानना है कि आज के फ़िल्मी संगीत के कारण ही शास्त्रीय संगीतकारों की पूछ भी बढ़ी है। जब उन्हें फ़िल्मों में संगीत देने व कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है तो लाखों लोग उन्हें पहचानते हैं। अतः फ़िल्मी संगीत पर उपर्युक्त दोष लगाना उचित नहीं है।

प्रश्न. 6.
शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं?
उत्तर:
कुमार गंधर्व का स्पष्ट मत है कि चाहे शास्त्रीय संगीत हो या फ़िल्मी संगीत, वही संगीत अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाएगा, जो ‘रसिकों या श्रोताओं को अधिक आनंदित कर सकेगा। वस्तुतः यह तथ्य बिलकुल सही है कि संगीत का मूल ही आनंद है। संगीत की उत्पत्ति उल्लास से हुई है। श्रोता भी संगीत अपने मनोविनोद के लिए ही सुनते हैं न कि ज्ञान के लिए। अतः संगीत का चरम उद्देश्य आनंद प्राप्ति ही है। जो भी संगीत श्रोताओं को अधिक-से-अधिक आनंदित करेगा, वही अधिक लोकप्रिय भी होगा। अतः उसी को अधिक महत्त्व भी श्रोताओं द्वारा दिया जाएगा। यह बात संगीत ही नहीं अन्य सभी कलाओं पर भी लागू होती है। शास्त्रीय संगीत भी रंजक या आनंददायक न हो तो वह बिलकुल नीरस ही कहलाएगा। कुछ करने और सोचने के लिए।

प्रश्न. 1.
पाठ में दिए गए अंतरों के अलावा संगीत शिक्षक से चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत का अंतर पता करें। इन अंतरों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:

शास्त्रीय संगीत चित्रपट संगीत
1. इसे मार्गी संगीत भी कहा जाता है। 1. इसमें लोकसंगीत तथा शास्त्रीय संगीत दोनों का ही प्रयोग हो सकता है।
2. यह स्वरों के अधार पर गाया जाता है। 2. इसे स्वरों या बिना स्वरों के अनुसार परिस्थिति के अनुरूप गाया जाता है।
3. इसमें लय, ताल आदि का उल्लंघन वर्जित होता है। 3. इसका मुख्य आधार लोकप्रियता है, अतः इसके गायन में स्वतंत्रता है।
4. यह रागों पर आधारित होता है। 4. इसमें रागों के साथ-साथ लोकगीतों का मिश्रण भी किया जाता है
5. इसमें आरोह, अवरोह आदि पर विशेष ध्यान दिया| 5. इसमें कर्णप्रियता पर अधिक ध्यान दिया जाता है। जाता है।
6. इसमें हास्यरस का प्रायः अभाव रहता है। 6. फ़िल्मी संगीत में हास्य प्रधान गीतों का गायन भी खूब होता है।

प्रश्न. 2.
कुमार गंधर्व ने लिखा है-चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है? क्या शास्त्रीय मानकों को भी चित्रपट संगीत से कुछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें।
उत्तर:
यह बात बिलकुल सत्य है कि चित्रपट संगीत को गाने के लिए शास्त्रीय संगीत का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। यह उतना सरल भी नहीं है, जितना इसे समझा जाता है। प्रायः फ़िल्मों में शास्त्रीय संगीत का भी प्रयोग देखा जाता है। उसमें भी स्वरों में उतार-चढ़ाव व लय आदि का ध्यान रखना होता है, अत: बिना शास्त्रीय संगीत सीखे एक अच्छा चित्रपट संगीत गायक नहीं बना जा सकता। किंतु शास्त्रीय संगीत के गायकों को स्वर-ताल आदि के विषय में चित्रपट संगीत से कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं होती। हाँ, उन्हें इस विषय में अवश्य कुछ सीखना चाहिए कि शास्त्रीय संगीत को भी चित्रपट संगीत के समान लोकप्रिय कैसे बनाया जाए? ताकि अधिक-से-अधिक लोग शास्त्रीय संगीत की ओर आकर्षित हो सकें। इसके अतिरिक्त इसमें नए-नए प्रयोगों के लिए भी अवकाश रखना चाहिए। शास्त्रीय संगीत वर्षों से उन्हीं नियमों में बँधा। हुआ है। उसमें नएपन का अभाव है, इसी कारण वह इतना लोकप्रिय नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार चित्रपट संगीत में नई धुनों व गीतों का समावेश किया जाता है, उसी प्रकार शास्त्रीय संगीत में भी नए-नए रागों की रचना निरंतर होती रहनी चाहिए। तभी यह लोकरंजक होकर लोकप्रिय हो सकेगा। अतः शास्त्रीय गायकों को ये तथ्य चित्रपट संगीत के गायकों से सीखने चाहिए।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
लता मंगेशकर को बेजोड़ गायिका क्यों माना गया है? कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
लता मंगेशकर को बेजोड़ कहने का कारण है
(क) उनकी सुरीली आवाज़ जो ईश्वर की देन तो है ही, पर स्वयं लता जी ने उसे बहुत त्याग करके निखारा है।
(ख) उनके गायन में जो ‘गानपन’ है वैसा किसी अन्य में नहीं मिलता।
(ग) उच्चारण में शुद्धता और नाद का जैसा संगम है, जैसी भावों में निर्मलता है, उसने लता जी को सभी अन्य गायिकाओं से अलग बना दिया है।

प्रश्न. 2.
लेखक ने प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ से लता मंगेशकर के आगे निकल जाने का क्या कारण बताया है?
उत्तर:
लता से पूर्व चित्रपट संगीत में प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का अपना एक जमाना था, परंतु उसी क्षेत्र में बाद में आई हुई लता उससे कहीं आगे निकल गई। कला के क्षेत्र में ऐसे चमत्कार कम ही होते हैं, पर होते तो हैं। लेखक के अनुसार, नूरजहाँ की गायकी का स्वर मादक उत्तान भरा था, जबकि लता के स्वर में निर्मल, कोमल और मुग्धता भरी हुई है और यही उनकी लोकप्रियता का कारण है।

प्रश्न. 3.
कुमार गंधर्व ने लता जी की गायकी के किन दोषों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
कुमार गंधर्व का मानना है कि लता जी की गायकी में करुण रस विशेष प्रभावशाली रीति से व्यक्त नहीं होता। उन्होंने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया। बजाय इसके मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति वाले गीत बड़ी उत्कटता से गाए हैं। दूसरी बात यह है कि लता ज्यादातर ऊँची पट्टी में ही गाती हैं जो चिलवाने जैसा लगता है। आगे लेखक ने दोनों ही दोषों को निर्देशकों पर डालकर लता जी को दोषमुक्त कर दिया है।

प्रश्न. 4.
लेखक के अनुसार लता जी का तीन मिनट का गायन शास्त्रीय संगीत के तीन घंटे से भी अधिक प्रभावशाली है। कैसे?
उत्तर:
लेखक कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय गायन किसी उत्तम लेखक के किसी विस्तृत लेख में जीवन के रहस्य का विशद रूप में वर्णन जैसा है। वही बात, वही रहस्य, छोटे से सुभाषित का, या नन्हीं-सी कहावत में सुंदरता और परिपूर्णता के साथ प्रकट होता है, लता जी के गायन में यही श्रेष्ठता है। वे आगे लिखते हैं कि तीन घंटों की रंगदार महफिल का सारा रस लता की तीन मिनट की ध्वनि मुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है। उनका एक-एक गाना एक संपूर्ण कलाकृति होती है।

प्रश्न. 5.
‘भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर’,-प्रस्तुत पाठ में गाने के लिए किन तत्वों को आवश्यक माना गया है?
उत्तर:
पाठ के लेखक कुमार गंधर्व के अनुसार गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर मुख्यतः अवलंबित रहती है। रंजकता का मर्म रसिक वर्ग के समक्ष कैसे प्रस्तुत किया जाए, किस रीति से उसकी बैठक बिठाई जाए और श्रोताओं से कैसे सुसंवाद साधा जाए इसमें समाविष्ट है। सरल शब्दों में कहें तो गाने के लिए सबसे आवश्यक तत्व है उसकी रंजकता अर्थात् श्रोताओं द्वारा जो गायकी सबसे अधिक पसंद की जाती है वही सर्वश्रेष्ठ है। गाने की कसौटी उसकी लोकप्रियता है।

प्रश्न. 6.
लता मंगेशकर को चित्रपट संगीत के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर:
चित्रपट संगीत के क्षेत्र की लता अनभिषिक्त साम्राज्ञी हैं। और भी अनेक पार्श्व गायिकाएँ हैं, पर लता की लोकप्रियता इन सबसे कहीं अधिक है। उनकी लोकप्रियता के शिखर का स्थान अचल है। बीते अनेक वर्षों से आज तक उनकी लोकप्रियता अबाधित है। लगभग आधी शताब्दी तक जनमत पर “सतत प्रभुत्व रखना आसान नहीं है। लता की लोकप्रियता केवल देश में ही नहीं, विदेशों में भी लोगों को उनके गीत पागल कर देते हैं। अंत में, वे कहते हैं कि ऐसा कलाकार शताब्दियों में एक ही पैदा होता है।

प्रश्न. 7.
चित्रपट संगीत और लता मंगेशकर का परस्पर अटूट संबंध है।’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
लता मंगेशकर के जीवन से चित्रपट संगीत को अलग करके देखें तो वहाँ जीवन नहीं होगा, ठीक वैसे ही चित्रपट संगीत से लता को हटा दें तो अर्धशताब्दी विशाल शून्य-सी प्रतीत होगी। पिछले पचपन-साठ वर्षों से लता जी अबाध रूप से गायकी के क्षेत्र में अपनी लोकप्रियता बनाए हुए हैं और यही लोकप्रियता चित्रपट निर्माताओं को बार-बार बाध्य करती है। कि वे अगली फ़िल्म के गीत भी लता जी से गवाते हैं, वो भी उनकी शर्ते मानकर। इस दीर्घकाल में बहुत-सी नई-अच्छी गायिकाएँ भी आईं जिन्हें अवसर मिले और वे लोकप्रिय भी हुई, पर लता जी के मुकाम तक कोई नहीं पहुँच सकी। अतः बाध्य होकर फिर जहाज़ के पंछी की भाँति फ़िल्म निर्माता लता जी के पास पहुँच जाते हैं।

इस अटूट संबंध को पहला कारण है-लता जी की योग्यता, जिसके समक्ष कोई नहीं टिक पाता। दूसरी बात है-लता जी का त्याग ! इस कला के प्रति उनके जैसा समर्पण अन्य किसी कलाकार में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। यही कारण है। कि उनके साथ उनके बाद आनेवाली अनेकानेक पाश्र्व गायिकाएँ उतनी एकाग्रता से संगीत के साथ न्याय नहीं कर पाईं, क्योंकि उनका ध्यान अन्यत्र भी लगा रहता थ। उन सबकी तुलना में लता जी का जीवन पूरी तरह संगीत को समर्पित है। यही समर्पण चित्रपट संगीत के साथ उनका अटूट संबंध बनाए हुए है।

प्रश्न. 8.
पाठ के आधार पर शास्त्रीय और चित्रपट संगीत की तुलनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर:
शास्त्रीय संगीत, हर संगीत का आधार है; चाहे वह लोक संगीत है या चित्रपट संगीत है। शास्त्रीय संगीत में सुर, ताल और लय का निर्धारित नियमबद्ध शास्त्र है। उसी शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए निश्चित आरोह-अवरोह से राग बने हैं। उन रागों को निर्धारित ताल में निबद्ध किया गया है। ये केवल साज पर भी बजाई जा सकती हैं। संगीत के ज्ञान के अभाव में श्रोताओं के लिए शास्त्रीय संगीत मनोरंजक नहीं हो पाता। चित्रपट संगीत में साज आवाज़ के साथ-साथ अंदाज़ भी है। इन गीतों के बोल चित्रपट की आवश्यकता के अनुरूप होते हैं।

इन्हें श्रोता अधिक चाव से सुनते हैं। यदि उन्हें संगीत का ज्ञान न भी हो तो भी शब्दों के आकर्षण से उसमें रस भर जाता है और श्रोताओं को मनोरंजक लगता है। पाठ के लेखक कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय संगीत की तीन घंटे की बंदिश में भी उतना आनंद नहीं जितना चित्रपट संगीत की तीन मिनट की ध्वनि मुद्रिका में आता है। शास्त्रीय संगीत के अभाव में किसी भी प्रकार का संगीत संभव नहीं है, यही सबका आधार है, लेकिन चित्रपट संगीत इसकी तुलना में अधिक लोकप्रिय होता है। वस्तुतः शास्त्रीय संगीत का विशिष्ट वर्ग का संगीत है, जबकि चित्रपट संगीत जन-जन का संगीत है।

प्रश्न. 9.
लता मंगेशकर ने किन-किन विषयों पर गीत गाए हैं?
उत्तर:
फ़िल्म संगीतवालों ने समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में एक प्रभावशाली परिवर्तन किया। इस संगीत की लचकदारी और रोचकता ही उसकी सामर्थ्य है। यहाँ का तंत्र ही अलग है। यहाँ नवनिर्मित की बहुत गुंजाइश है। इसी कारण लता मंगेशकर ने राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, मराठी प्रदेशों के लोकगीतों को खूब गाया है। धूप का कौतुक करनेवाले पंजाबी लोकगीत, रूक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत, पहाड़ों की घाटियों, खोरों में प्रतिध्वनि देनेवाले पहाड़ी गीत लता जी ने गाए हैं।

ऋतु चक्र समझाने वाले और खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषि गीत, ब्रजभूमि के गीत जिनमें सहजता समाई हुई है, को फ़िल्मों में खूब लिया गया और इसी परिणामस्वरूप लता जी द्वारा गाया भी गया। कुमार गंधर्व का मानना है कि यदि लता जी के संगीत निर्देशकों के स्थान पर ‘वे होते तो इतना सरल-सरल काम लता जैसी गायिका को नहीं देते। “मैं उन्हें और मुश्किल काम देता।” इसका कारण वे बताते हैं कि लता में और बहुत-सी संभावनाएँ छिपी हैं। उन्हें बाहर लाने के लिए उनसे और कठिन कार्य करवाया जाना चाहिए।

प्रश्न. 10.
लता मंगेशकर की गायकी की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
लता मंगेशकर की गायकी के दोनों पक्षों का वर्णन किया गया है। उन्होंने, लता की निर्विवाद सुरीली आवाज़ का जिक्र किया है कि लता आवाज़ के कारण उस ज़माने की प्रसिद्ध गायिकाओं से ऊपर फ़िल्म जगत पर छा गईं। उसके बाद, गाने के तरीके में ‘गानपन’ की तारीफ़ करते हुए लेखक ने इसे जन सामान्य के मन की गहराइयों तक उतरकर लोकप्रियता का कारण बताया है। तीसरी बात है, उनके द्वारा शब्दों का नादमय उच्चारण, जिसकी पूँज लंबे समय तक श्रोताओं के मन पर बनी रहती है।

चौथा गुण बताते हुए कुमार गंधर्व लिखते हैं कि लता के व्यक्तित्व की निर्मलता उनके स्वर में भी है और वही गायकी के माध्यम से श्रोताओं के कानों और मन पर निर्मलता का असर छोड़ती है। यही कारण है कि लता के आने के बाद हमारे देश के लोगों का (सामान्य लोगों का) संगीत के प्रति रुझान और दृष्टिकोण बदल गया है। उन्हीं के कारण लोगों में अच्छे गीतों की समझ जागृत हुई है। कुमार गंधर्व ने कहा है कि लता ने करुण रस के साथ न्याय नहीं किया और दूसरा यह कि वे सदा उच्च स्वर में ही गाती हैं जो चिलवाने जैसा लगता है। दोनों दोषों का कारण वे लता
को कम और निर्देशकों को अधिक मानते हैं।

प्रश्न. 11
आज शास्त्रीय संगीत के स्थान पर फ़िल्म संगीत को अधिक पसंद किया जाता है। क्यों?
उत्तर:
भारत में शास्त्रीय संगीत प्रायः घरानों के नाम से काफ़ी पुराने समय से चला आ रहा है। पहले यह राजदरबारों, मंदिरों आदि तक सीमित था। इसे श्रेष्ठता का सूचक माना जाता था। आधुनिक युग में फ़िल्मों के आने से संगीत की दिशा बदली। शास्त्रीय संगीत अपनी सीमा को लाँघना नहीं चाहता था। कठिन होने के कारण जनसाधारण की समझ से यह बाहर था। फ़िल्मी संगीत सरल होने के कारण जनसाधारण में लोकप्रिय हो गया। फ़िल्मी संगीत सरल, सर्वसुलभ, कर्णप्रिय होने के कारण आम जनता इसकी तरफ आकर्षित हो रही है। शास्त्रीय संगीत सरकारी सहायता का मोहताज रहता है। सरकारी कार्यक्रमों को छोड़कर अन्य सभी सामाजिक कार्यक्रमों में फ़िल्मी संगीत छाया रहता है। शास्त्रीय संगीत को सीखने में कठिन मेहनत, धैर्य व धन की जरूरत होती है। आप की दृष्टि से यह ज्यादा लाभदायक नहीं है जबकि फ़िल्मी संगीत कम मेहनत, से सीखा जा सकता है। इससे आय भी अधिक होती है। इसलिए फ़िल्मी संगीत ज्यादा लोकप्रिय है।

प्रश्न. 12.
चित्रपट संगीत का दिनोदिन विस्तार क्यों होता जा रहा है?
उत्तर:
लेखक ने बताया है कि शास्त्रीय संगीत शुद्धता पर अधिक ज़ोर देता है। इस कारण यह सीमित हो रहा है। चित्रपट संगीत में नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। उनमें शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ लोकगीतों, भक्ति गीतों, कृषकगीतों आदि का भी समावेश किया जा रहा है। श्रोता को नए पन की दरकार रहती है। श्रोता को गायन में सुरीलापन व भावुकता अधिक पसंद है। चित्रपट संगीत श्रोताओं की पसंद व परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढाल लेता है।

चित्रपट संगीत का क्षेत्र व्यापक है। इसमें रेगिस्तान का रंग भी है तो समुद्र की लहरें भी गरजती हैं। कहीं वर्षा है तो पर्वतीय गुफाओं के पहाड़ी गीत भी होते हैं। अनेक राज्यों के संगीत को मिलाकर नए गाने बनाए जा रहे हैं। हम कह सकते हैं कि चित्रपट संगीत ने अपने द्वार खोल रखे हैं। वह विश्व के हर रूप को अपने अंदर समाहित कर रहा है। उसका एकमात्र लक्ष्य श्रोताओं को आनंद प्रदान करना है। इसके लिए वह हर नियम को तोड़ने के लिए तैयार है। यही कारण है। कि चित्रपट संगीत का विस्तार दिनोंदिन होता जा रहा है।

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