NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (Hindi Medium)

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Economics. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Developments Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal.

प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. भारत में आर्थिक सुधार क्यों आरंभ किए गए?
उत्तर : आर्थिक सुधार निम्न कारणों से आरंभ किए गए
(क) 1991 में भारत एक आर्थिक संकट का सामना कर रहा था।
(ख) सरकारी राजस्व से अधिक सरकारी व्यय ने भारी उधारी को जन्म दिया। 1991 में राष्ट्रीय ऋण सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 60% था। सरकार ब्याज तक देने में असमर्थ थी। इसका मुख्य कारण विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में संसाधन प्रबंधन की अक्षमता थी।
(ग) विदेशी मुद्रा भंडार जिन्हें हम आयातों के भुगतान के लिए रखते हैं, इतने कम हो गए की वे केवल तीन सप्ताह के लिए पर्याप्त थे।
(घ) खाड़ी युद्ध के कारण कीमतों के बढ़ने की दर दोहरे अंक में पहुँच गई, जिसने संकट को और बढ़ा दिया। मुद्रास्फीति की दर 12% प्रति वर्ष था।
(ङ) घटिया प्रबंधन के कारण बहुत से सार्वजनिक क्षेत्र के उपकर्म घाटे में चल रहे थे। इस संकट का जवाब सरकार ने 1991 की नई आर्थिक नीति की उद्घोषणा करके दिया।

प्र.2. विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर : आई.एम.एफ. और विश्व बैंक से ऋण प्राप्ति के लिए और अन्य देशों के साथ मुफ्त व्यापार करने के लिए विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना आवश्यक है। विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बने बिना एक देश वैश्वीकृत होते विश्व व्यापार का लाभ नहीं उठा सकता।

प्र.3. भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र में नियंत्रक की भूमिका से स्वयं को सुविधाप्रदाता की भूमिका अदा करने में क्यों परिवर्तित किया?
उत्तर : भारतीय रिज़र्व बैंक नियंत्रक की भूमिका से स्वयं को सुविधाप्रदाता की भूमिका अदा करने का बड़ा परिवर्तन किया। पहले एक नियंत्रक के रूप में, आर.बी.आई. खुद ब्याज तय करता था तथा प्रबंधकीय निर्णयों को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता था। परंतु उदारीकरण के उपरांत इसने सुविधाप्रदाता की भूमिका निभाई जिसके अंतर्गत ब्याज दरों को बाज़ार बलों द्वारा निर्धारित होने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया तथा प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक को प्रबंधन निर्णयों की स्वतंत्रता दे दी गई। उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना आवश्यक था। उदारीकरण के साथ बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। अतः बाज़ार से उत्तम प्राप्ति के लिए बैंकों को प्रबंधन निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना आवश्यक हो गया।

प्र.4, रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर किस प्रकार नियंत्रण रखता है?
उत्तर : रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर निम्न प्रकार से नियंत्रण रखता है

(क)
यह उस न्यूनतम रोकड़ की राशि/अनुपात निर्धारित करता है जो हर व्यावसायिक बैंक को रिज़र्व बैंक के पास रखनी पड़ती है। इसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है।

(ख)
यह उस न्यूनतम अनुपात का निर्धारण करता है जो नकद था तरल परिसंपत्तियों के रूप में एक बैंक को अपने पास रखना होता है। इसे वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं।

(ग)
रिज़र्व बैंक वह ब्याज दर निर्धारित करता है जिस पर रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों के विनिमय बिलों को छूट देगा। इसे बैंक दर कहते हैं।

प्र.5. रुपयों के अवमूल्यन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : नियंत्रण प्राधिकारी के निर्णय से जब विनिमय दर में गिरावट आती है जिससे एक मुद्रा का मूल्य अन्य मुद्रा की तुलना में कम हो जाता है तो उसे अवमूल्यन कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप, आयात महँगे और निर्यात सस्ते हो जाते हैं। अतः निर्यात बढ़ जाते हैं। और आयात कम हो जाते हैं। इस तरह व्यापार का संतुलन ठीक हो जाता है।

प्र.6. इनमें भेद करें:
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक
उत्तर :
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 (Hindi Medium) 1
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प्र.7. प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर : प्रशुल्क घरेलू वस्तुओं की तुलना में आयातित वस्तुओं को महँगा बनाने के लिए लगाए जाते हैं। इससे घरेलू वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है तथा विदेशी वस्तुओं की माँग कम हो जाती है। यह घरेलू उद्योग की रक्षा के दृष्टिकोण से लगाए जाते हैं।

प्र.8. परिमाणात्मक प्रतिबंधों का क्या अर्थ होता है?
उत्तर : यह भुगतान संतुलन (बी.ओ.पी.) के घाटे को कम करने और घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए आयात पर लगाई गई कुल मात्रा या कोटे के रूप में प्रतिबंध को दर्शाता है।

प्र.9. ‘लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों को निजीकरण कर देना चाहिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर : नहीं, इसका विपरीत है, हमें घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए। यदि हम लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करेंगे तो यह सरकारी राजस्व के लिए नुकसान होगा जो देश के विकास के लिए प्रयोग किया जा सकता था। सार्वजनिक उपक्रमों को प्रतिस्पर्धी, आधुनिकीकृत और दक्ष होने के लिए लाभ की ज़रूरत है।

प्र.10. क्या आपके विचार से बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है? विकसित देशों में इसका विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर : बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है क्योंकि
(क) यह कई भारतीयों को रोजगार प्रदान कर रहा है।
(ख) यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से देश में विदेशी मुद्रा ला रहा है। विकसित देश इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि
(क) इससे विकसित और विकासशील देशों के बीच आय की असमानता कम हो जाएगी।
(ख) यह उनके अपने देश में रोजगार के अवसर कम कर रहा है।

प्र.11. भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केंद्र बन रहा है। अनुकूल परिस्थितियाँ क्या हैं?
उत्तर : भारत एक विश्व बाह्य प्रापण केंद्र बन रहा है क्योंकि
(क) भारत में सस्ते दरों पर पर्याप्त कुशल जनशक्ति उपलब्ध है।
(ख) भारत में ऐसी सरकारी नीतियाँ हैं जो बाह्य प्रापण के पक्ष में हैं।
(ग) भारत विकसित देशों से दुनिया के एक अन्य भाग में स्थित है जिससे समय का अंतराल है।

प्र.12. क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे?
उत्तर :
सरकार ने कुछ लाभ कमा रही सार्वजनिक उपक्रमों को विशेष स्वायत्ता देने का निर्णय किया। 1996 में ‘नवरत्न नीजी’ अपनाई गई जिसके अंतर्गत 9 सर्वाधिक लाभ कमा रही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नवरत्न का दर्जा दिया गया तथा अन्य 97 लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को ‘लघुरत्न’ कहा गया।

‘नवरत्न’ और ‘लघुरत्न’ नाम के अलंकरण के बाद इन कंपनियों के निष्पादन में अवश्य ही सुधार आया है। उन्हें अधिक प्रचालन और प्रबंधकीय स्वायत्ती दी गई जिससे उनकी दक्षता और उसके द्वारा मुनाफे में वृद्धि हुई है।

प्र.13. सेवा क्षेत्रक के विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक कौन-से रहे हैं?
उत्तर : सेवा क्षेत्रक के विकास के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी रहे हैं
भारत का एक मज़बूत औद्योगिक आधार नहीं है। अतः सुधार अवधि में द्वितीयक क्षेत्रक ने अधिक विकास नहीं किया। विदेशी निवेशक कृषि की भारतीय प्रकृति और जोखिम शामिल होने के कारण, उन्हें कृषि में और निवेश में कोई रुचि नहीं थी। उन्हें भारत अनुबंधित सेवाओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त लगता था।

प्र.14. सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है। क्यों?
उत्तर : यह बिल्कुल सही कहा गया है कि सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ है।

(क)
सुधार अवधि के दौरान कृषि में सार्वजनिक निवेश विशेष रूप से सिंचाई, बिजली, सड़क, बाजार, लिकेज, अनुसंधान और विस्तार के क्षेत्र में कम हुआ है।

(ख)
उर्वरक सहायिकी हटाने से उत्पादन की लागत बढ़ गई है जिसने छोटे और सीमांत किसानों को दुष्प्रभावित किया है।

(ग)
इस क्षेत्र में बहुत जल्दी जल्दी निति परिवर्तन हुए हैं जिसमें भारतीय किसानों को दुष्प्रभावित किया है क्योंकि अब उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

(घ)
कृषि में निर्यात उन्मुख रणनीति के कारण उत्पादन घरेलू बाजार के बजाय निर्यात बाजार के लिए हो रहा है। इससे खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के बदले नकदी फसलों पर ध्यान केंद्रित करवाया। इससे खाद्यान्नों की कीमतों पर दबाव बढ़ गया।

प्र.15, सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर : औद्योगिक क्षेत्रक का सुधार अवधि में निराशाजनक निष्पादन रहा है क्योंकि

(क)
सस्ते आयात- यह इस तथ्य के कारण है कि विदेशों से आने वाले सस्ते आयातों ने भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया और घरेलू उत्पादकों को अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

(ख)
बुनियादी ढाँचे की कमी- निवेश में कमी के कारण आधारभूत सुविधाएँ, जैसे-बिजली आपूर्ति अपर्याप्त बनी रही।

(ग)
विकासशील देशों में रोजगार के प्रतिकूल हालात– वैश्वीकरण ने रोजगार की स्थिति के संदर्भ में घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है परंतु रोज़गार के हालात प्रतिकूल हैं।

(घ)
अनुचित वैश्वीकरण- भारत जैसे विकासशील देशों की अब भी उच्च अप्रशुल्क अवरोधकों के कारण विकसित देशों के बाजार तक पहुँच नहीं है।

प्र.16. सामाजिक न्याय और जन-कल्याण के परिपेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।
उत्तर : जब हम आर्थिक सुधारों को सामाजिक न्याय और जन-कल्याण के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करते हैं तो आर्थिक सुधारों को हानिकारक पाते हैं। अपने दृष्टिकोण के लिए हम निम्नलिखित कारण दे सकते हैं

(क)
हालाँकि सुधार अवधि में विकास दरों में वृद्धि हुई है परंतु यह एक व्यवसाय रहित वृद्धि रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इस बात को अनदेखा करते हुए कि भारत श्रम प्रधान देश है, पूँजी प्रधान तकनीकों का प्रयोग करती हैं।

(ख)
सुधारों ने निवेश की कमी के कारण कृषि को दुष्प्रभावित किया है तथा इस क्षेत्रक के वृद्धि दरों में सुधार अवधि में कमी आई है।

(ग)
सुधारों ने दुर्लभ संसाधनों का गलत आबंटन किया है। एक भारत जैसा देश जहाँ एक व्यक्ति पाँचवाँ हिस्सा अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है, वह माल, कुत्ते के भोजन, चॉकलेट और आइसक्रीम पर निवेश कर रहा है।

(घ)
भारत के छोटे उत्पादक विशाल अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में असफल रहे हैं। अतः उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा।

(ङ)
जिन सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का निजीकरण ले गया उसके कर्मचारियों के लिए रोजगार स्थितियाँ बदतर हो गई।

(च)
सुधारों ने एक दोहरी अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है जिसके अंतर्गत हम विश्व स्तर के अस्पताल और असहनीय सरकारी अस्पताल, विश्व स्तर के स्कूल और तम्बू में चलाए जा रहे स्कूल एक साथ देखे जा सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में कोई निवेश नहीं किया और यदि किया भी तो ऐसा जो केवल भारत के अमीर वर्ग के लिए है।

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