CBSE Class 11 Hindi पत्रकारिता के विविध आयाम

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CBSE Class 11 Hindi पत्रकारिता के विविध आयाम

पत्रकारिता के विविध आयाम :

पत्रकारिता अपने आसपास की चीज़ों, घटनाओं और लोगों के बारे में ताज़ा जानकारी रखना मनुष्य का सहज स्वभाव है। उसमें जिज्ञासा का भाव बहुत प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्व है। जिज्ञासा नहीं रहेगी तो समाचार की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। पत्रकारिता का विकास इसी सहज जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश के रूप में हुआ। वह आज भी इसी मूल सिद्धांत के आधार पर काम करती है।

पत्रकारिता क्या है?

हम सूचनाएँ या समाचार जानना चाहते हैं। क्योंकि सूचनाएँ अगला कदम तय करने में हमारी सहायता करती हैं। इसी तरह हम अपने पास-पड़ोस, शहर, राज्य और देश-दुनिया के बारे में जानना चाहते हैं। ये सूचनाएँ हमारे दैनिक जीवन के साथ-साथ पूरे समाज को प्रभावित करती हैं। आज देश-दुनिया में जो कुछ हो रहा है, उसकी अधिकांश जानकारी हमें समाचार माध्यमों से मिलती है। हमारे प्रत्यक्ष अनुभव से बाहर की दुनिया के बारे में हमें अधिकांश जानकारी समाचार माध्यमों द्वारा दिए जाने वाले समाचारों से ही मिलती है।

समाचार :

विभिन्न समाचार माध्यमों के ज़रिये दुनियाभर के समाचार हमारे घरों में पहुँचते हैं। समाचार संगठनों में काम करने वाले पत्रकार देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में परिवर्तित करके हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज़ सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हें समाचार के प्रारूप में ढालकर प्रस्तुत करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही पत्रकारिता कहते हैं।

समाचार की कुछ परिभाषाएँ :

  • प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार है।
  • समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप धारण कर लेती है।
  • किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।
  • समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है?

समाचार क्या है?

हर सूचना समाचार नहीं है यानी हर सूचना समाचार माध्यमों में प्रकाशित या प्रसारित नहीं होती है। मित्रों, रिश्तेदारों और सहकर्मियों से आपसी कुशलक्षेत्र और हालचाल का आदान-प्रदान समाचार माध्यमों के लिए समाचार नहीं है। इसकी वजह यह है कि आपसी कुशलक्षेम हमारा व्यक्तिगत मामला है। हमारी नज़दीकी लोगों के अलावा अन्य किसी की उसमें दिलचस्पी नहीं होगी।

दरअसल, समाचार माध्यम कुछ लोगों के लिए नहीं, बल्कि अपने हज़ारों-लाखों पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों के लिए काम करते हैं। स्वाभाविक है कि वे समाचार के रूप में उन्हीं घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं को चुनते हैं जिन्हें जानने में अधिक से अधिक लोगों की रुचि होती है। यहाँ हमारा आशय उस तरह के समाचारों से है जिनका किसी न किसी रूप में सार्वजनिक महत्त्व होता है। ऐसे समाचार अपने समय के विचार, घटना और समस्याओं के बारे में लिखे जाते हैं। ये समाचार ऐसी सम-सामयिक घटनाओं, समस्याओं और विचारों पर आधारित होते हैं जिन्हें जानने की अधिक से अधिक लोगों में दिलचस्पी होती है और जिनका अधिक से अधिक लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है।

इसके बावजूद ऐसा कोई फ़ार्मूला नहीं है जिसके आधार पर यह कहा जाए कि यह घटना समाचार है और यह नहीं। पत्रकार और समाचार संगठन ही किसी भी समाचार के चयन, आकार और उसकी प्रस्तुति का निर्धारण करते हैं। यही कारण है कि समाचारपत्रों और समाचार चैनलों में समाचारों के चयन और प्रस्तुति में इतना फ़र्क दिखाई पड़ता है। एक समाचारपत्र में एक समाचार मुख्य समाचार (लीड स्टोरी) हो सकता है और किसी अन्य समाचारपत्र में वही समाचार भीतर के पृष्ठों पर कहीं एक कॉलम का समाचार हो सकता है। किसी घटना, समस्या और विचार में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जिनके होने पर उसके समाचार बनने की संभावना बढ़ जाती है। उन तत्त्वों को लेकर समाचार माध्यमों में एक आम सहमति है। समाचार को इस तरह परिभाषित किया जा सकता है –

समाचार किसी भी ऐसी ताज़ा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।

दरअसल, समाचार माध्यमों के उपभोक्ता यानी पाठक, दर्शक और श्रोता अपने मूल्यों, रुचियों और दृष्टिकोणों में बहुत विविधताएँ और भिन्नताएँ लिए होते हैं। इन्हीं के अनुरूप उनकी सूचना प्राथमिकताएँ भी निर्धारित होती हैं। परंपरागत पत्रकारिता के मानदंडों के अनुसार समाचार मीडिया को लोगों की सूचनाओं की ज़रूरत और माँग के बीच संतुलन कायम करना पड़ता है। कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिनके बारे में हमें जानकारी होना आवश्यक है और कुछ घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जिनके बारे में जानकारी न भी हो तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता, अलबत्ता उन्हें पढ़कर या सुनकर या देखकर हमें मज़ा आता है। इन दिनों समाचार माध्यमों में मज़ेदार और मनोरंजक समाचारों को प्राथमिकता देने का रुझान प्रबल हुआ है।

समाचार के तत्व :
समाचार के निम्नलिखित तत्व होते हैं –

  • नवीनता
  • निकटता
  • प्रभाव
  • जनरुचि
  • टकराव या संघर्ष
  • महत्त्वपूर्ण लोग ।
  • उपयोगी जानकारियाँ
  • अनोखापन
  • पाठक वर्ग
  • नीतिगत ढाँचा

नवीनता :

किसी भी घटना, विचार या समस्या के समाचार बनने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह नया यानी ताज़ा हो। कहा भी जाता है ‘न्यू’ है इसलिए ‘न्यूज़’ है। घटना जितनी ताज़ी होगी, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। तात्पर्य यह है कि समाचार वही है जो ताज़ी घटना के बारे में जानकारी देता है। एक घटना को एक समाचार के रूप में किसी समाचार संगठन में स्थान पाने के लिए, इसका सही समय पर सही स्थान यानी समाचार कक्ष में पहुँचना आवश्यक है। मोटे तौर पर कह सकते हैं कि उसका समयानुकूल होना ज़रूरी है।

एक दैनिक समाचारपत्र के लिए आमतौर पर पिछले 24 घंटों की घटनाएँ समाचार होती हैं। एक चौबीस घंटे के टेलीविज़न और रेडियो चैनल के लिए तो समाचार जिस तेज़ी से आते हैं, उसी तेज़ी से बासी भी होते चले जाते हैं। एक दैनिक समाचारपत्र के लिए वे घटनाएँ सामयिक हैं जो कल घटित हुई हैं। आमतौर पर एक दैनिक समाचारपत्र की अपनी एक डेडलाइन (समय-सीमा) होती है जब तक कि समाचारों को वह कवर कर पाता है। मसलन अगर एक प्रात:कालीन दैनिक समाचारपत्र रात 12 बजे तक के समाचार कवर करता है तो अगले दिन के संस्करण के लिए 12 बजे रात से पहले के चौबीस घंटे के समाचार सामयिक होंगे।

लेकिन अगर द्वितीय विश्वयुद्ध या ऐसी किसी अन्य ऐतिहासिक घटना के बारे में आज भी कोई नई जानकारी मिलती है जिसके बारे में हमारे पाठकों को पहले जानकारी नहीं थी तो निश्चय ही वह उनके लिए समाचार है। दुनिया के अनेक स्थानों पर बहुत-सी ऐसी चीजें होती हैं जो वर्षों के मौजूद हैं लेकिन यह किसी अन्य देश के लिए कोई नई बात हो सकती है और निश्चय ही समाचार बन सकती है।

कुछ ऐसी घटनाएँ भी होती हैं जो रातोंरात घटित नहीं होती बल्कि जिन्हें घटने में वर्षों लग जाते हैं। मसलन किसी गाँव में पिछले 20 वर्षों में लोगों की जीवनशैली में क्या-क्या परिवर्तन आए और इन परिवर्तनों के क्या कारण थे-यह जानकारी निश्चय ही एक समाचार है लेकिन यह एक ऐसी समाचारीय घटना है, जिसे घटने में बीस वर्ष लगे। स्पष्ट है कि घटना का ताज़ा होना ही ज़रूरी नहीं हैं। नवीनता के तत्व न होने पर भी उसके समाचार बनने की संभावना बढ़ जाती है।

निकटता :

किसी भी समाचार संगठन में किसी समाचार के महत्त्व का मूल्यांकन अर्थात उसे समाचार पत्र या बुलेटिन में शामिल किया जाएगा या नहीं, इसका निर्धारण इस आधार पर भी किया जाता है कि वह घटना उसके कवरेज क्षेत्र और पाठक/दर्शक/श्रोता समूह के कितने करीब हुई है? हर घटना का समाचारीय महत्त्व काफ़ी हद तक उसकी स्थानीयता से भी निर्धारित होता है।

ज़ाहिर है सबसे करीब वाला ही सबसे प्रिय भी होता है। यह मानव स्वभाव है। स्वाभाविक है कि लोग उन घटनाओं के बारे में जानने के लिए अधिक उत्सुक होते हैं जो उनके करीब होती हैं। लेकिन यह निकटता भौगोलिक नज़दीकी के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक नज़दीकी से भी जुड़ी हुई है। यही कारण है कि हम अपने शहर और आसपास के क्षेत्रों के अलावा अपने राज्य और देश के अंदर क्या हुआ, यह जानने को उत्सुक रहते हैं। हम अपने देशवासियों से सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं, चाहे वे हमसे सैकड़ों मील दूर बैठे हों।

यही नहीं, इस सांस्कृतिक निकटता के कारण हम विदेशों में बसे भारतीयों से जुड़ी घटनाओं को भी जानना चाहते हैं लेकिन एक जैसी महत्त्व की दो घटनाओं में से स्थानीय समाचार पत्र में उस घटना के खबर बनने की संभावना ज़्यादा है जो उसके पाठकों के ज्यादा करीब हई है। इसका एक कारण तो करीब होना है और दूसरा कारण यह भी है कि उसका असर उन पर भी पड़ता है।

प्रभाव :

किसी घटना के प्रभाव से भी उसका समाचारीय महत्त्व निर्धारित होता है। किसी घटना की तीव्रता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि उससे कितने सारे लोग प्रभावित हो रहे हैं या कितने बड़े भू-भाग पर उसका असर हो रहा है। किसी घटना से जितने अधिक लोग प्रभावित होंगे, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। जाहिर है जिन घटनाओं का पाठकों के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ रहा हो, उसके बारे में जानने की उनमें स्वाभाविक इच्छा होती है।
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जनरुचि :

किसी विचार, घटना और समस्या के समाचार बनने के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों की उसमें दिलचस्पी हो। वे उसके बारे में जानना चाहते हों। कोई भी घटना समाचार तभी बन सकती है, जब पाठकों या दर्शकों का एक बड़ा तबका उसके बारे में जानने में रुचि रखता हो। हर समाचार संगठन का अपना एक लक्ष्य समूह (टार्गेट ऑडिएंस) होता है और वह समाचार संगठन अपने पाठकों या श्रोताओं की रुचियों को ध्यान में रखकर समाचारों का चयन करता है। लेकिन हाल के वर्षों में लोगों की रुचियों और प्राथमिकताओं में भी तोड़-मरोड़ की प्रक्रिया काफ़ी तेज़ हुई है और यह भी सच है कि लोगों की रुचियों में परिवर्तन भी आ रहे हैं। कह सकते हैं कि रुचियाँ कोई स्थिर चीज़ नहीं हैं, गतिशील हैं।

टकराव या संघर्ष :

किसी घटना में टकराव या संघर्ष का पहलू होने पर उसके समाचार के रूप में चयन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि लोगों में टकराव या संघर्ष के बारे में जानने की स्वाभाविक दिलचस्पी होती थी। इसकी वजह यह है कि टकराव या संघर्ष का उनके जीवन पर सीधा असर पड़ता है। वे उससे बचना चाहते हैं और इसलिए उसके बारे में जानना चाहते हैं। यही कारण है कि युद्ध और सैनिक टकराव के बारे में जानने की लोगों में सर्वाधिक रुचि होती है।

महत्त्वपूर्ण लोग :

मशहूर और जाने-माने लोगों के बारे में जानने की आम पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं में स्वाभाविक इच्छा होती है। कई बार किसी घटना से जुड़े लोगों के महत्त्वपूर्ण होने के कारण भी उसका समाचारीय महत्त्व बढ़ जाता है। जैसे अगर प्रधानमंत्री को जुकाम भी हो जाए तो यह एक खबर होती है। इसी तरह किसी फ़िल्मी सितारे या क्रिकेट खिलाड़ी का विवाह भी खबर बन जाती है जबकि यह एक नितांत निजी आयोजन होता है। दरअसल, लोग यह जानना चाहते हैं कि मशहूर लोग उस मुकाम तक कैसे पहुँचे, उनका जीवन कैसा होता है और विभिन्न मुद्दों पर उनके क्या विचार हैं? लेकिन कई बार समाचार माध्यम महत्त्वपूर्ण लोगों की खबर देने के लोभ में उनके निजी जीवन की सीमाएँ लाँघ जाते हैं। यही नहीं, महत्त्वपूर्ण लोगों के बारे में जानकारी देने के नाम पर कई बार समाचार माध्यम अफ़वाहें और कोरी गप प्रकाशित-प्रसारित करते दिखाई पड़ते हैं।

उपयोगी जानकारियाँ :

अनेक ऐसी सूचनाएँ भी समाचार मानी जाती हैं जिनका समाज के किसी विशेष तबके के लिए खास महत्त्व हो सकता है। ये लोगों की तात्कालिक उपयोग की सूचनाएँ भी हो सकती हैं। मसलन स्कूल कब खुलेंगे, किसी खास कॉलोनी में बिजली कब बंद रहेगी. पानी का दबाव कैसा रहेगा, वहाँ का मौसम कैसा रहेगा आदि। ऐसी सूचनाओं का हमारे रोज़मर्रा के जीवन में काफ़ी उपयोग होता है और इसलिए उन्हें जानने में आम लोगों की सहज दिलचस्पी होती है।

अनोखापन :

अनहोनी घटनाएँ समाचार होती हैं। लोग इनके बारे में जानना चाहते हैं लेकिन समाचार मीडिया को इस तरह की घटनाओं के संदर्भ में काफ़ी सजगता बरतनी चाहिए अन्यथा कई मौकों पर यह देखा गया है कि इस तरह के समाचारों ने लोगों में अवैज्ञानिक सोच और अंधविश्वास को जन्म दिया है।

पाठक वर्ग :

आमतौर पर हर समाचार संगठन से प्रकाशित-प्रसारित होने वाले समाचार पत्र और रेडियो/टी०वी० चैनलों का एक खास पाठक/ दर्शक/श्रोता वर्ग होता है। समाचार संगठन समाचारों का चुनाव करते हुए अपने पाठक वर्ग की रुचियों और ज़रूरतों का विशेष ध्यान रखते हैं। ज़ाहिर है कि किसी समाचारीय घटना का महत्त्व इससे भी तय होता है कि किसी खास समाचार का ऑडिएंस कौन है और उसका आकार कितना बड़ा है।

इन दिनों ऑडिएंस का समाचारों के महत्त्व के आकलन में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसका एक नतीजा यह हुआ है कि अतिरिक्त क्रय शक्ति वाले सामाजिक तबकों अर्थात अमीरों और मध्यम वर्ग से अधिक पढ़े जाने वाले समाचारों को ज्यादा महत्त्व मिलता रहा है। इसकी वजह यह है कि विज्ञापनदाताओं की इन वर्गों में ज्यादा रुचि होती है। लेकिन इस वजह से समाचार माध्यमों में गरीब और कमजोर वर्ग के पाठकों और उनसे जुड़ी खबरों को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

नीतिगत ढाँचा :

विभिन्न समाचार संगठनों की समाचारों के चयन और प्रस्तुति को लेकर एक नीति होती है। इस नीति को ‘संपादकीय नीति’ भी कहते हैं। संपादकीय नीति का निर्धारण संपादक या समाचार संगठन के मालिक करते हैं। समाचार संगठन, समाचारों के चयन में अपनी संपादकीय नीति का भी ध्यान रखते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे केवल संपादकीय नीति के अनुकूल खबरों का ही चयन करते हैं बल्कि वे उन खबरों को भी चुनते हैं जो संपादकीय नीति के अनुकूल नहीं है। यह ज़रूर हो सकता है कि संपादकीय लाइन के प्रतिकूल खबरों को उतनी प्रमुखता न दी जाए जितनी अनुकूल खबरों को दी जाती है।

संपादन :

समाचार संगठनों में द्वारपाल की भूमिका संपादक और सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक और उपसंपादक आदि निभाते हैं। वे न सिर्फ अपने संवाददाताओं और अन्य स्रोतों से प्राप्त समाचारों के चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं बल्कि उनकी प्रस्तुति की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है। समाचार संगठनों में समाचारों के संकलन का कार्य जहाँ रिपोर्टिंग की टीम करती है, वहीं उन्हें संपादित कर लोगों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी संपादकीय टीम पर होती है।

संपादन का अर्थ है किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाना। एक उपसंपादक अपने रिपोर्टर की खबर को ध्यान से पढ़ता है और उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी तथा तथ्य संबंधी अशुद्धियों को दूर करता है। वह उस खबर के महत्त्व के अनुसार उसे काटता-छाँटता है और उसे कितनी और कहाँ जगह दी जाए, यह तय करता है। इसके लिए वह संपादन के कुछ सिद्धांतों का पालन करता है।

संपादन के सिद्धांत :

पत्रकारिता कुछ सिद्धांतों पर चलती है। एक पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह समाचार संकलन और लेखन के दौरान इनका पालन करेगा। आप कह सकते हैं कि ये पत्रकारिता के आदर्श या मूल्य भी हैं। इनका पालन करके ही एक पत्रकार और उसका समाचार संगठन अपने पाठकों का विश्वास जीत सकता है। किसी भी समाचार संगठन की सफलता उसकी विश्वसनीयता पर टिकी होती है। पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना ज़रूरी है –

  1. तथ्यों की शुद्धता (एक्युरेसी)
  2. वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टीविटी)
  3. निष्पक्षता (फ़ेयरनेस)
  4. संतुलन (बैलेंस)
  5. स्रोत (सोर्सिंग-एट्रीब्यूशन)

तथ्यों की शुद्धता या तथ्यपरकता (एक्युरेसी) :

एक आदर्श रूप में मीडिया और पत्रकारिता यथार्थ या वास्तविकता का प्रतिबिंब है। इस तरह एक पत्रकार समाचार के रूप में यथार्थ को पेश करने की कोशिश करता है लेकिन यह अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है। सच यह है कि मानव यथार्थ की नहीं, यथार्थ की छवियों की दुनिया में रहता है। किसी घटना के बारे में हमें जो भी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, उसके अनुसार हम उस यथार्थ की एक छवि अपने मस्तिष्क में बना लेते हैं और यही छवि हमारे लिए वास्तविक यथार्थ का काम करती है। एक तरह से हम संचार माध्यमों द्वारा स्मृति छवियों की दुनिया में रहते हैं।

दरअसल, यथार्थ को उसकी संपूर्णता में प्रतिबिंबित करने के लिए आवश्यक है कि ऐसे तथ्यों का चयन किया जाए जो उसका संपूर्णता में प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन समाचार में किसी भी यथार्थ को अत्यंत सीमित चयनित सूचनाओं को तथ्यों के माध्यम से ही व्यक्त करते हैं। इसलिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि किसी भी विषय के बारे में समाचार लिखते वक्त हम किन सूचनाओं और तथ्यों का चयन करते हैं और किन्हें छोड़ देते हैं। चुनौती यही है कि ये सूचनाएँ और तथ्य सबसे अहम हों और संपूर्ण घटना का प्रतिनिधित्व करते हों। तथ्य बिलकुल सटीक और सही होने चाहिए और उन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जाना चाहिए।

वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टीविटी) :

वस्तुपरकता को भी तथ्यपरकता से आँकना आवश्यक है। वस्तुपरकता और तथ्यपरकता के बीच काफ़ी समानता भी है लेकिन दोनों के बीच के अंतर को भी समझना ज़रूरी है। एक जैसे होते हुए भी ये दोनों अलग विचार हैं। तथ्यपरकता का संबंध जहाँ अधिकाधिक तथ्यों से है वहीं वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है ? किसी विषय या मुद्दे के बारे में हमारे मस्तिष्क में पहले से बनी हुई छवियाँ समाचार मूल्यांकन की हमारी क्षमता को प्रभावित करती हैं और हम इस यथार्थ को उन छवियों के अनुरूप देखने का प्रयास करते हैं।

वस्तुपरकता की अवधारणा का संबंध हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक मूल्यों से अधिक है। हमें ये मूल्य हमारे सामाजिक माहौल से मिलते हैं। वस्तुपरकता का तकाज़ा यही है कि एक पत्रकार समाचार के लिए तथ्यों का संकलन और उसे प्रस्तुत करते हुए अपने आकलन को अपनी धारणाओं या विचारों से प्रभावित न होने दे।

निष्पक्षता (फ़ेयरनेस) :

एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना भी बहुत ज़रूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन की साख बनती है। यह साख तभी बनती है जब समाचार संगठन बिना किसी का पक्ष लिए सचाई सामने लाते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका है। लेकिन निष्पक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है। इसलिए पत्रकारिता सही और गलत, अन्याय और न्याय जैसे मसलों के बीच तटस्थ नहीं हो सकती बल्कि वह निष्पक्ष होते हुए भी सही और न्याय के साथ होती है।
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जब हम समाचारों में निष्पक्षता की बात करते हैं तो इसमें न्यायसंगत होने का तत्व अधिक अहम होता है। आज मीडिया एक बहुत बड़ी ताकत है। एक ही झटके में वह किसी की इज़्ज़त पर बट्टा लगाने की ताकत रखती है। इसलिए किसी के बारे में समाचार लिखते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहीं किसी को अनजाने में ही बिना सुनवाई के फाँसी पर तो नहीं लटकाया जा रहा है।

संतुलन (बैलेंस) :

निष्पक्षता की अगली कड़ी संतुलन है। आमतौर पर मीडिया पर आरोप लगाया जाता है कि समाचार कवरेज संतुलित नहीं है यानी वह किसी एक पक्ष की ओर झुका है। आमतौर पर समाचार में संतुलन की आवश्यकता वहीं पड़ती है जहाँ किसी घटना में अनेक पक्ष शामिल हों और उनका आपस में किसी न किसी रूप में टकराव हो। उस स्थिति में संतुलन का तकाज़ा यही है कि सभी संबद्ध पक्षों की बात समाचार में अपने-अपने समाचारीय वज़न के अनुसार स्थान पाए।

स्रोत :

हर समाचार में शामिल की गई सूचना और जानकारी का कोई स्रोत होना आवश्यक है। यहाँ स्रोत के संदर्भ में सबसे पहले यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि किसी भी समाचार संगठन के स्रोत होते हैं और फिर उस समाचार संगठन का पत्रकार जब सूचनाएँ एकत्रित करता है तो उसके अपने भी स्रोत होते हैं। इस तरह किसी भी दैनिक समाचारपत्र के लिए पीटीआई (भाषा), यूएनआई (यूनीवार्ता) जैसी समाचार एजेंसियाँ और स्वयं अपने ही संवाददाताओं और रिपोर्टरों का तंत्र समाचारों का स्रोत होता है। लेकिन चाहे समाचार एजेंसी हो या समाचारपत्र, इनमें काम करने वाले पत्रकारों के भी अपने समाचार स्रोत होते हैं। यहाँ हम एक पत्रकार के समाचार के स्रोतों की चर्चा करेंगे।

समाचार की साख को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इसमें शामिल की गई सूचना या जानकारी का कोई स्रोत हो और वह स्रोत इस तरह की सूचना या जानकारी देने का अधिकार रखता हो और समर्थ हो। कुछ जानकारियाँ बहुत सामान्य होती हैं जिनके स्रोतों का उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। लेकिन जैसे ही कोई सूचना ‘सामान्य’ होने के दायरे से बाहर निकलकर ‘विशिष्ट’ होती है उसके स्रोत का उल्लेख आवश्यक हो जाता है। स्रोत के बिना उसकी साख नहीं होगी। एक समाचार में समाहित सूचनाओं का स्रोत होना आवश्यक है और जिन सूचना का कोई स्रोत नहीं है, उसका स्रोत या तो पत्रकार स्वयं है या फिर यह एक सामान्य जानकारी है जिसका स्रोत देने की आवश्यकता नहीं है।

पत्रकारिता के अन्य आयाम :

समाचारपत्र पढ़ते समय पाठक हर समाचार से एक ही तरह की जानकारी की अपेक्षा नहीं रखता। कुछ घटनाओं के मामले में वह उसका विवरण विस्तार से पढ़ना चाहता है तो कुछ अन्य के संदर्भ में उसकी इच्छा यह जानने की होती है कि घटना के पीछे क्या है? उसकी पृष्ठभूमि क्या है? उस घटना का उसके भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा और इससे उसका जीवन तथा समाज किस तरह प्रभावित होगा? समय, विषय और घटना के अनुसार पत्रकारिता में लेखन के तरीके बदल जाते हैं। यही बदलाव पत्रकारिता में कई नए आयाम जोड़ता है। समाचार के अलावा विचार, टिप्पणी, संपादकीय, फ़ोटो और कार्टून पत्रकारिता के अहम हिस्से हैं। समाचारपत्र में इनका विशेष स्थान और महत्त्व है। इनके बिना कोई समाचारपत्र स्वयं को संपूर्ण नहीं करा सकता।

संपादकीय पृष्ठ को समाचारपत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचारपत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।

फ़ोटो पत्रकारिता ने छपाई की टेक्नॉलोजी विकसित होने के साथ ही समाचारपत्रों में अहम स्थान बना लिया है। कहा जाता है कि जो बात हज़ार शब्दों में लिखकर नहीं कही जा सकती, वह एक तसवीर कह देती है। फ़ोटो टिप्पणियों का असर व्यापक और सीधा होता है। टेलीविज़न की बढ़ती लोकप्रियता के बाद समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में तसवीरों के प्रकाशन पर ज़ोर और बढ़ा है।

कार्टून कोना लगभग हर समाचारपत्र में होता है और उनके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। एक तरह से कार्टून पहले पन्ने पर प्रकाशित होने वाले हस्ताक्षरित संपादकीय हैं। इनकी चुटीली टिप्पणियाँ कई बार कड़े और धारदार संपादकीय से भी अधिक प्रभावी होती हैं।

रेखांकन और कार्टोग्राफ़ समाचारों को न केवल रोचक बनाते हैं बल्कि उन पर टिप्पणी भी करते हैं। क्रिकेट के स्कोर से लेकर सेंसेक्स के आँकड़ों तक-ग्राफ़ से पूरी बात एक नज़र में सामने आ जाती है। कार्टोग्राफ़ी का उपयोग समाचारपत्रों के अलावा टेलीविज़न में भी होता है।

पत्रकारिता के कुछ प्रमुख प्रकार :

खोजपरक पत्रकारिता –

खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छान-बीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो। आमतौर पर खोजी पत्रकारिता सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। खोजी पत्रकारिता का उपयोग उन्हीं स्थितियों में किया जाता है जब यह लगने लगे कि सचाई को सामने लाने के लिए और कोई उपाय नहीं रह गया है। खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप टेलीविज़न में स्टिंग ऑपरेशन के रूप में सामने आया है।

हालाँकि भारत में खोजी पत्रकारिता तीन दशक पहले ही शुरू हो गई थी लेकिन हमारे देश में यह अब भी अपने शैशवकाल में ही है। जब ज़रूरत से ज्यादा गोपनीयता बरती जाने लगे और भ्रष्टाचार व्यापक हो तो खोजी पत्रकारिता ही उसे सामने लाने का एकमात्र विकल्प बचती है। अमेरिका का वाटरगेट कांड खोजी पत्रकारिता का एक नायाब उदाहरण है, जिसमें राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफ़ा देना पड़ा था। भारत में भी कई केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को खोजी पत्रकारिता के कारण अपने पदों से इस्तीफ़ा देना पड़ा।

विशेषीकृत पत्रकारिता :

पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्त्व है? इसके लिए विशेषता की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फ़ैशन और फ़िल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।

वॉचडॉग पत्रकारिता :

यह माना जाता है कि लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है
और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका परदाफ़ाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है। इसका दूसरा छोर सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। समाचार मीडिया केवल वही समाचार देता है जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनात्मक पक्ष का परित्याग कर देता है। आमतौर पर इन दो बिंदुओं के बीच तालमेल के ज़रिये ही समाचार मीडिया और इसके तहत काम करने वाले विभिन्न समाचार संगठनों की पत्रकारिता का निर्धारण होता है।

एडवोकेसी पत्रकारिता :

ऐसे अनेक समाचार संगठन होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोर-शोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है। भारत में भी कुछ समाचारपत्र या टेलीविज़न चैनल किसी खास मुद्दे पर जनमत बनाने और सरकार को उसके अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए अभियान चलाते हैं। उदाहरण के लिए जेसिका लाल हत्याकांड में न्याय के लिए समाचार माध्यमों ने सक्रिय अभियान चलाया।

वैकल्पिक पत्रकारिता :

मीडिया स्थापित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा है और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाले मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है। इसी तरह की मीडिया आमतौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलोचना के एक निश्चित दायरे में ही काम करता है। इस तरह के मीडिया का स्वामित्व आमतौर पर बड़ी पूँजी के पास होता है और वह मुनाफ़े के लिए काम करती है। उसका मुनाफ़ा मुख्यतः विज्ञापन से आता है।

इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। आमतौर पर इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन हासिल नहीं होता है। उसे बड़ी कंपनियों के विज्ञापन भी नहीं मिलते हैं और वह अपने पाठकों के सहयोग पर निर्भर होता है।

समाचार माध्यमों में मौजूदा रुझान :

देश में मध्यम वर्ग के तेज़ी से विस्तार के साथ ही मीडिया के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। साक्षरता और क्रय शक्ति बढ़ने से भारत में अन्य वस्तुओं के अलावा मीडिया के बाज़ार का भी विस्तार हो रहा है। इस बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर तरह के मीडिया का फैलाव हो रहा है-रेडियो, टेलीविज़न, समाचारपत्र, सेटेलाइट टेलीविज़न और इंटरनेट सभी विस्तार के रास्ते पर हैं। लेकिन बाज़ार के इस विस्तार के साथ ही मीडिया का व्यापारीकरण भी तेज़ हो गया है और मुनाफ़ा कमाने को ही मुख्य ध्येय समझने वाले पूँजीवादी वर्ग ने भी मीडिया के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश किया है।

व्यापारीकरण और बाज़ार होड़ के कारण हाल के वर्षों में समाचार मीडिया ने अपने खास बाज़ार (क्लास मार्केट) को आम बाज़ार (मास मार्केट) में तब्दील करने की कोशिश की है। यही कारण है कि समाचार मीडिया और मनोरंजन की दुनिया के बीच का अंतर कम होता जा रहा है और कभी-कभार तो दोनों में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। समाचार के नाम पर मनोरंजन बेचने के इस रुझान के कारण आज समाचारों में वास्तविक और सरोकारीय सूचनाओं और जानकारियों का अभाव होता जा रहा है।

आज निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लोगों को ‘जानकार नागरिक’ बनाने में मदद कर रहा है बल्कि अधिकांश मौकों पर यही लगता है कि लोग ‘गुमराह उपभोक्ता’ अधिक बन रहे हैं, अगर आज समाचार की परंपरागत परिभाषा के आधार पर देश के जाने-माने समाचार चैनलों का मूल्यांकन करें तो एक-आध चैनल को छोड़कर अधिकांश सूचनारंजन (इन्फोटेनमेंट) के चैनल बनकर रह गए हैं, जिसमें सूचना कम और मनोरंजन ज़्यादा है। इसकी वजह यह है कि आज समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा एक ऐसा उद्योग बन गया है जिसका मकसद अधिकतम मुनाफ़ा कमाना है। समाचार उद्योग के लिए समाचार भी पेप्सी-कोक जैसा एक उत्पाद बन गया है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को गंभीर सूचनाओं के बजाय सतही मनोरंजन से बहलाना और अपनी ओर आकर्षित करना हो गया है।

दरअसल, उपभोक्ता समाज का वह तबका है जिसके पास अतिरिक्त क्रय शक्ति है और व्यापारीकृत मीडिया अतिरिक्त क्रय शक्ति वाले सामाजिक तबके में अधिकाधिक पैठ बनाने की होड़ में उतर गया है। इस तरह की बाज़ार होड़ में उपभोक्ता को लुभाने वाले समाचार पेश किए जाने लगे हैं और उन वास्तविक समाचारीय घटनाओं की उपेक्षा होने लगी है जो उपभोक्ता के भीतर ही बसने वाले नागरिक की वास्तविक सूचना आवश्यकताएँ थीं और जिनके बारे में जानना उसके लिए आवश्यक है।

इस दौर में समाचार मीडिया बाज़ार को हड़पने की होड़ में ज़्यादा से ज्यादा लोगों की चाहत पर निर्भर होता जा रहा है और लोगों की ज़रूरत किनारे की जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि समाचार मीडिया में हमेशा से ही सनसनीखेज़ या पीत-पत्रकारिता और पेज-थ्री पत्रकारिता की धाराएँ मौजूद रही हैं। इनका हमेशा अपना स्वतंत्र अस्तित्व रहा है, जैसे ब्रिटेन का टेबलॉयड मीडिया और भारत में भी ‘ब्लिट्ज़’ जैसे कुछ समाचारपत्र रहे हैं। पेज-थ्री भी मुख्यधारा की पत्रकारिता में मौजूद रहा है। लेकिन इन पत्रकारीय धाराओं के बीच एक विभाजन रेखा थी जिसे व्यापारीकरण के मौजूदा रुझान ने खत्म कर दिया है।

यह स्थिति हमारे लोकतंत्र के लिए एक गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट पैदा कर रही है। आज हर समाचार संगठन सबसे अधिक बिकाऊ बनने की होड़ में एक ही तरह के समाचारों पर टूटता दिखाई पड़ रहा है। इससे विविधता खत्म हो रही है और ऐसी स्थिति पैदा हो रही है जिसमें अनेक अखबार हैं और सब एक जैसे ही हैं। अनेक समाचार चैनल हैं। ‘सर्फ’ करते रहिए, बदलते रहिए और एक ही तरह के समाचारों को एक ही तरह से प्रस्तुत होते देखते रहिए।

विविधता समाप्त होने के साथ-साथ समाचार माध्यमों में केंद्रीकरण का रुझान भी प्रबल हो रहा है। हमारे देश में परंपरागत रूप से कुछ बड़े राष्ट्रीय अखबार थे। इसके बाद क्षेत्रीय प्रेस था और अंत में ज़िला-तहसील स्तर के छोटे समाचारपत्र थे। नई प्रौद्योगिकी आने के बाद पहले तो क्षेत्रीय अखबारों ने जिला और तहसील स्तर के प्रेस को हड़प लिया और अब राष्ट्रीय प्रेस क्षेत्रीय पाठकों में अपनी पैठ बना रहा है और क्षेत्रीय प्रेस राष्ट्रीय रूप अख्तियार कर रहा है। आज चंद समाचारपत्रों के अनेक संस्करण हैं और समाचारों का कवरेज अत्यधिक आत्मकेंद्रित, स्थानीय और विखंडित हो गया है। समाचार कवरेज में विविधता का अभाव तो है ही, साथ ही समाचारों की पिटी-पिटाई अवधारणाओं के आधार पर लोगों की रुचियों और प्राथमिकताओं को परिभाषित करने का रुझान भी प्रबल हुआ है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्नः 1.
प्राचीन काल में कागज मुख्य रूप से किससे बनता था?
उत्तरः
सूती चिथड़ों से।

प्रश्नः 2.
जिस कागज़ पर अखबार छपता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तरः
न्यूजप्रिंट।

प्रश्नः 3.
दुनिया की पहली मुद्रित पुस्तक कहाँ छपी थी?
उत्तरः चीन में।

प्रश्नः 4.
जॉन गुटेनबर्ग ने प्रेस का आविष्कार कब किया था?
उत्तरः
1556 ई० में।

प्रश्नः 5.
विश्व की पहली मुद्रित पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तरः
बाइबिल।

प्रश्नः 6.
रोमन साम्राज्य परिषद् के जुलियस सीजर ने ई०पू० 60 में हाथ लिखे किस दैनिक बुलेटिन की शुरुआत की?
उत्तरः
एक्टा डायना।

प्रश्नः 7.
अंग्रेजी के ‘टाइप’ शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है?
उत्तरः
ग्रीक।

प्रश्नः 8.
किसी शब्द के कंपोज करने पर दो अक्षरों के मध्य रहने वाले स्थान को क्या कहते हैं?
उत्तरः
काउंटर।

प्रश्नः 9.
टाइप के ऊपर का वह भाग जो छपता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तरः
फेस।

प्रश्नः 10.
हिंदी दैनिक सामान्यतया कितने प्वांइट के टाइप का उपयोग करते हैं?
उत्तरः
12 प्वांइट।

प्रश्नः 11.
अंग्रेज़ी दैनिक सामान्यतया कितने प्वांइट के टाइप का उपयोग करते हैं?
उत्तरः
6 से 8 प्वांइट।

प्रश्नः 12.
लेटर प्रेस मुद्रण प्रणाली में मुख्यतः किन मशीनों का उपयोग किया जाता है?
उत्तरः
रोटरी मशीनें।

प्रश्नः 13.
अब अखबार की छपाई किन मशीनों पर होती है?
उत्तरः
ऑफसेट मशीनों पर।

प्रश्नः 14.
लिथोग्राफी मुद्रण प्रणाली का विकास किसने किया था?
उत्तरः
एलोइस सेनिफल्डर ने।

प्रश्नः 15.
कागज़ का सर्वप्रथम उपयोग किस देश में हुआ?
उत्तरः
चीन में।

प्रश्नः 16.
भारत में कागज़ कहाँ बनता है?
उत्तरः
नेपानगर में।

प्रश्नः 17.
किसी कागज़ की गुणवत्ता की जानकारी किससे मिलती है?
उत्तरः
कागज़ किस चीज़ से बना है, कागज़ में स्याही पार जाने से रोकने की कितनी क्षमता है, कागज़ कितना चिकना या खुरदरा है, इन सभी से कागज़ की गुणवत्ता के बारे में पता चलता है।

प्रश्नः 18.
‘शावक संवाददाता’ किसे कहते हैं ?
उत्तरः
नौसिखिए संवाददाता को।

प्रश्नः 19.
संवाददाता का शाब्दिक अर्थ बताइए।
उत्तरः
सूचना भेजनेवाला।

प्रश्नः 20.
एक अच्छा इंट्रो कितने शब्दों का होना चाहिए?
उत्तरः
30 से 40 शब्द।

प्रश्नः 21.
समाचार में इंट्रो लिखने की कला का प्रारंभ किसके द्वारा किया माना जाता है?
उत्तरः
एडविन एल० शुमैन।

प्रश्नः 22.
समाचार में जो कुछ छपता है, उसका निश्चय करने वाला कौन होता है?
उत्तरः
संपादक

प्रश्नः 23.
अपुष्ट समाचार किसे कहते हैं?
उत्तरः
जिसका संबद्ध पक्ष से पुष्टिकरण नहीं होता।

प्रश्नः 24.
समाचार का प्रदर्शक (Display windows) किसे कहते हैं?
उत्तरः
समाचार के शीर्षक को।

प्रश्नः 25.
किसी समाचार-पत्र के संपादक का व्यक्तित्व किस पृष्ठ पर मुखरित होता है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर।

प्रश्नः 26.
‘समाचार-पत्र का पहला कर्तव्य है कि वह सुंदर दिखे, दूसरा यह कि वह सच बोले।’ यह किसका कथन है?
उत्तरः
मार्क ट्वेन।

प्रश्नः 27.
भारत के समाचार-पत्रों पर किस देश की समाचार-पत्र शैली का ज्यादा प्रभाव है?
उत्तरः
ग्रेट ब्रिटेन।

प्रश्नः 28.
जब किसी समाचार-पत्र में साज-सज्जा से संबद्धु सभी पक्षों की अवहेलना की जाती है, तो इसे कौन-सी साज सज्जा कहते हैं?
उत्तरः
सरकर मेकअप।

प्रश्नः 29.
‘लेबल हेड’ किस प्रकार के शीर्षक को कहते हैं?
उत्तरः
नीरस एवं प्राणहीन।

प्रश्नः 30.
किसी अन्य समाचार-पत्र या संवाददाता की चोरी करके समाचार तैयार करने को पत्रकारिता की शब्दावली में क्या कहते हैं?
उत्तरः
लिफ़्ट।

प्रश्नः 31.
पत्रकारिता की शब्दावली में ‘मोर’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
किसी पांडुलिपि से संबंधित आगे का समाचार अभी प्राप्त नहीं हुआ है।

प्रश्नः 32.
एक साधारण पाठक के लिए कौन-से समाचार महत्त्वपूर्ण होते हैं?
उत्तरः
स्थानीय समाचार।

प्रश्नः 33.
एक श्रेष्ठ संवाददाता में कौन-सा गुण होना चाहिए?
उत्तरः
संशयं या अविश्वास।

प्रश्नः 34.
समाचार-पत्र के पूरे एक कालम या उसके मध्य भाग में रखे गए केवल एक पंक्ति के छोटे शीर्षक को क्या कहते हैं?
उत्तरः
क्रॉस लाइन।

प्रश्नः 35.
वह शीर्षक जिसके सबसे ऊपर की प्रथम पंक्ति पूरे कालम के चौड़ाई के बाराबर होती है तथा इसके बाद पंक्तियाँ क्रमशः एक-दूसरे से छोटी होती हैं, कौन-से शीर्षक कहे जाते हैं?
उत्तरः
इनवर्टेड पिरामिड।

प्रश्नः 36.
यदि किसी शीर्षक में पंक्तियों को क्रमशः एक के बाद एक बाईं ओर से दाईं ओर थोड़ा हटाकर रखा जाता है तथा प्रत्येक पंक्ति की लंबाई बराबर होती है, इसे कौन-सा शीर्ष कहते हैं?
उत्तरः
ड्राप लाइन।

प्रश्नः 37.
उस शीर्षक में जिसमें बराबर पूरे कॉलम की लंबाई वाली केवल चार पंक्तियाँ होती हैं, ऐसे शीर्षक को क्या कहते हैं?
उत्तरः
स्क्वायर इण्डेशन।

प्रश्नः 38.
लघु समाचार-पत्र कितने प्रसार संख्या वाले अखबार को कहते हैं?
उत्तरः
25 हज़ार।

प्रश्नः 39.
कितने प्रसार संख्या वाले समाचार-पत्र को मंझोले आकार के समाचार-पत्र कहते हैं?
उत्तरः
25 से 75 हज़ार।

प्रश्नः 40.
कितने प्रसार संख्या वाले पत्र को वृहत समाचार-पत्र कहते हैं?
उत्तरः
75 हज़ार से अधिक।

प्रश्नः 41.
कौन समाचार का महत्त्वपूर्ण स्रोत है? उत्तरः समाचार-एजेंसियाँ, संवाददाता, प्रेस-विज्ञप्तियाँ ।

प्रश्नः 42.
‘समाचार सामान्यतया वह उत्तेजक सूचना है, जिससे कोई व्यक्ति संतोष अथवा उत्तेजना प्राप्त करता है।’ यह कथन संबंधित है?
उत्तरः
चिल्टन बुश से।

प्रश्नः 43.
‘न्यूज’ शब्द किस अर्थ के अनुकूल है?
उत्तरः
चारों दिशाओं।

प्रश्नः 44.
किसी समाचार का शीर्षक क्या प्रकट करता है?
उत्तरः
तथ्य, भाव, महत्त्व।

प्रश्नः 45.
एक संपादक के व्यक्तित्व की छाप समाचार-पत्र के किस पृष्ठ पर दिखाई देती है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर।

प्रश्नः 46.
किस प्रकार का शीर्षक कभी नहीं लिखना चाहिए?
उत्तरः
भूतकाल में।

प्रश्नः 47.
किस प्रकार के शीर्षक सही नहीं माने जाते हैं?
उत्तरः
द्वि-अर्थी शीर्षक, ऋणात्मक शीर्षक, क्रिया से प्रारंभ।

प्रश्नः 48.
पारंपरिक रूप से संपादकीय लेख में क्या समाहित होता है?
उत्तरः
समस्या का कथन, समस्या का विश्लेषण एवं समस्या पर टिप्पणी।

प्रश्नः 49.
‘स्लग’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
किसी समाचार के एक से अधिक भाग होने पर उसके शीर्ष पर दिया गया संकेत।

प्रश्नः 50.
‘प्रेस कॉपी’ का अभिप्राय है?
उत्तरः
छपने के लिए तैयार किया गया समाचार।

प्रश्नः 51.
‘प्रिंट ऑर्डर’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
समाचार-पत्र की कितनी प्रतियाँ छपनी हैं, इसका लिखित आदेश।

प्रश्नः 52.
‘कॉलम’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
समाचार पृष्ठ का खंडों में विभाजन।

प्रश्नः 53.
‘प्रेस लाइन’ किसे कहते हैं?
उत्तरः
मुद्रक, प्रकाशक तथा संपादक के नाम आदि की घोषणा पंक्ति को।

प्रश्नः 54.
‘मास्टर हेड’ किसे कहते हैं ?
उत्तरः
समाचार-पत्र के नाम को।

प्रश्नः 55.
‘किल’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
समाचार को रद्द करने का निर्देश।

प्रश्नः 56.
‘फ्लैश’ का क्या अर्थ है?
उत्तरः
अत्यंत महत्त्वपूर्ण समाचार का पहला भाग।

प्रश्नः 57.
‘टाइप फेस’ किसे कहते हैं?
उत्तरः
अक्षर के मुखड़े की बनावट।

प्रश्नः 58.
समाचार में ‘एंगिल’ शब्द का क्या अभिप्राय है।
उत्तरः
किसी समाचार (कथानक) का विशेष दृष्टिकोण।

प्रश्नः 59.
समाचार-पत्र में ‘कैप्स’ का क्या अर्थ है?
उत्तरः
कैपिटल लेटर्स।

प्रश्नः 60.
‘क्लिपिंग’ का क्या अर्थ है?
उत्तरः
त्वरित संदर्भ हेतु समाचारों की कतरन।

प्रश्नः 61.
‘कॉपी डेस्क’ का क्या अर्थ है?
उत्तरः
जहाँ प्राप्त समाचारों का संपादन किया जाता है।

प्रश्नः 62.
‘कवर’ का क्या अर्थ है?
उत्तरः
किसी घटना की रिपोर्ट तैयार करना।

प्रश्नः 63.
‘डोप’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
अंदर की जानकारी।

प्रश्नः 64.
‘डेड लाइन’ का क्या अर्थ है?
उत्तरः
किसी संस्करण के लिए जमा करने का अंतिम मिनट/क्षण/समय।

प्रश्नः 65.
‘करेसपॉडेंट’ किसे कहते हैं?
उत्तरः
अपने शहर से बाहर रहनेवाले संवाददाताओं को।

प्रश्नः 66.
संवाददाता का क्या कार्य नहीं होता?
उत्तरः
समाचार संपादन।

प्रश्नः 67.
समाचार-पत्र प्रकाशन में ‘एसाइनमेंट’ का क्या आशय है?
उत्तरः
संपादक की ओर से संवाददाताओं को दिया जानेवाला निर्देश।

प्रश्नः 68.
समाचार-पत्र प्रकाशन में बैक-रूम का क्या आशय है?
उत्तरः
छोटे समाचारों के छपाई मशीन का कमरा।

प्रश्नः 69.
समाचार-पत्र में ‘डेक’ का क्या आशय है?
उत्तरः
शीर्षक का वह दूसरा व तीसरा भाग जो समाचारों की पुष्टि करता है।

प्रश्नः 70.
समाचार-पत्र में ‘बुलडॉग’ का क्या आशय है।
उत्तरः
समाचार-पत्र का पहला संस्करण।

प्रश्नः 71.
कैजुअल विज्ञापन किसे कहते हैं?
उत्तरः
कभी-कभी छपने वाला विज्ञापन ।

प्रश्नः 72.
‘सेंटर स्प्रेड’ किसे कहते हैं ?
उत्तरः
मध्य पृष्ठ पर फैले चित्र या लेख को।

प्रश्नः 73.
‘फालोअप’ क्या है?
उत्तरः
समाचारों का अनुवर्तन।

प्रश्नः 74.
‘जंप’ किसे कहते हैं?
उत्तरः
किसी समाचार के अंश को दूसरे पृष्ठ पर ले जाना।

प्रश्नः 75.
‘पत्रकार दीर्घा’ शब्द किससे संबंधित है?
उत्तरः
संसद के भीतर पत्रकारों के बैठने के स्थान से।

प्रश्नः 76.
समाचार के स्थान पर प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ‘खबर’ किस भाषा का है?
उत्तरः
अरबी।

प्रश्नः 77.
‘समाचार गतिशील साहित्य है। समाचार-पत्र समय के करघे पर इतिहास के बेलबूटेदार कपड़े बुनने वाले तकुए हैं।’ यह कथन किनसे संबंधित है?
उत्तरः
प्रेमनारायण चतुर्वेदी से।

प्रश्नः 78.
‘समाचार किसी अनोखी या असाधारण घटना की अविलंब सूचना को कहते हैं, जिसके बारे में लोग प्रायः पहले कुछ न जानते हों, किंतु जिसे तुरंत ही जानने की ज़्यादा से ज्यादा रुचि हो।’ यह कथन संबंधित है?
उत्तरः
मानचेस्टर गार्डियन शब्दकोष से।

प्रश्नः 79.
समाचार लेखों, समाचारों के लेखन तथा संपादन आदि से जुड़े व्यक्ति को क्या कहते हैं?
उत्तरः
पत्रकार।

प्रश्नः 80.
‘जर्नल’ शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के किस शब्द से हुई है?
उत्तरः
जर्नी।

प्रश्नः 81.
फ्रेंच भाषा में ‘जर्नी’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तरः
प्रतिदिन के कार्यों का विवरण।

प्रश्नः 82.
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार इटालियन ‘अर्नल’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के किस शब्द से हुई है?
उत्तरः
डियोना।

प्रश्नः 83.
किस विधा के माध्यम से नीरस विषय को रोचक बनाकर प्रस्तुत किया जा सकता है?
उत्तरः
लेख।

प्रश्नः 84.
साधारणतया समाचार-पत्रों में किस प्रकार के समाचारों को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है?
उत्तरः
राजनीतिक समाचार।

प्रश्नः 85.
समाचार-पत्र में खबरों के चयन तथा प्रकाशन के लिए कौन उत्तरदायी होता है?
उत्तरः
संपादक, उपसंपादक, संवाददाता।

प्रश्नः 86.
भारत-पाक संबंधों में सुधार के लिए पाकिस्तान के शहर कराची में शीर्षस्थ राजनीतिज्ञों की बैठक को किस प्रकार के समाचार की श्रेणी में रखेंगे?
उत्तरः
अंतर्राष्ट्रीय समाचार।

प्रश्नः 87.
स्थानीय समाचारों के स्रोत कौन-से होते हैं?
उत्तरः
कार्यालय संवाददाता, नगर संवाददाता, संवाद-सूत्र।

प्रश्नः 88.
यदि संवाददाता द्वारा भेजा गया कोई समाचार स्पष्ट न हो, तो ऐसी स्थिति में एक कुशल उप-संपादक क्या करता है?
उत्तरः
संदेह दूर न होने की स्थिति में उस समाचार को छोड़ देता है।

प्रश्नः 89.
किसे कॉपी संपादक भी कहते हैं?
उत्तरः
उप-संपादक को।

प्रश्नः 90.
वह संवाददाता जो छोटे कस्बे से समाचार भेजता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तरः
लाइनर।

प्रश्नः 91.
जिला मुख्यालय पर पूर्णकालिक पत्रकार के रूप में नियुक्त किया गया संवाददाता कौन-सा होता है?
उत्तरः
फुलफ्लेज्ड।

प्रश्नः 92.
समाचार-पत्रों के लिए कौन-सा दायित्व सर्वोपरि है?
उत्तरः
सामाजिक दायित्व।

प्रश्नः 93.
एक साधारण पाठक के लिए कौन-से समाचार महत्त्वपूर्ण होते हैं?
उत्तरः
स्थानीय समाचार।

प्रश्नः 94. एक समाचार का अनिवार्य तत्व क्या-क्या है?
उत्तरः
विशिष्टता, नवीनता तथा परिवर्तन।

प्रश्नः 95.
किसी समाचार-पत्र में अधिकतर किस प्रकार के संपादकीय लिखे जाते हैं?
उत्तरः
समसामयिक संपादकीय।

प्रश्नः 96.
पत्रकारिता में ‘छह ककार’ समाचार के किस भाग से संबंधित है? उत्तरः इंट्रो।

प्रश्नः 97.
किसी बड़ी घटना को अत्यंत संक्षिप्त तथा सीधे वाक्य में कहा जाता है तथा जिसका प्रथम अनुच्छेद एक शीर्षक जैसा लगे, ऐसे इंट्रो को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तरः
कारतूस इंट्रो।

प्रश्नः 98.
पीत पत्रकारिता (Yellow journalism) का संबंध किस प्रकार के समाचारों से है?
उत्तरः
सनसनीखेज तथा उत्तेजनात्मक समाचार से।

प्रश्नः 99.
टेब्लॉयड समाचार-पत्र किसे कहते हैं?
उत्तरः
जो समाचार-पत्र पाँच कॉलम तथा छोटे आकार का हो।

प्रश्नः 100.
बेल पत्रकारिता किससे संबंधित है?
उत्तरः
दृष्टिहीनों से।

प्रश्नः 101.
पत्रकारिता में ‘प्ले-अप’ का क्या अभिप्राय है?”
उत्तरः
किसी समाचार को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रकाशित करना।

प्रश्नः 102.
पत्रकारिता में ‘नोज फॉर न्यूज’ (Nose for News) का क्या आशय है?
उत्तरः
समाचार के महत्त्व को शीघ्र पहचान लेना।

प्रश्नः 103.
भारत के समाचार-पत्रों का पंजीयक (प्रेस रजिस्ट्रार) को अपनी रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष किस तिथि के पूर्व देनी होती है?
उत्तरः 30
सितंबर से पूर्व।

प्रश्नः 104.
सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों तथा उपलब्धियों के बारे में सूचना देनेवाली प्रमुख एजेंसी कौन है?
उत्तरः
पीआईबी।

प्रश्नः 105.
पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) किस माध्यम से अपनी सूचना पहुँचाता है?
उत्तरः
प्रेस विज्ञप्तियाँ।

प्रश्नः 106.
समाचार-पत्र में ‘बीट’ शब्द का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
संवाददाता के समाचार संकलन करने का क्षेत्र।

प्रश्नः 107.
किसी समाचार में ब्रेक लाइन का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
समाचार के किसी भाग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सूचना देने वाली पंक्ति।

प्रश्नः 108.
समाचार में ‘ब्रीफ’ शब्द का प्रयोग किसके लिए होता है?
उत्तरः
संक्षिप्त सामाचार के लिए।

प्रश्नः 109.
समाचार में बाई लाइन (Byline) का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
किसी समाचार के ऊपर दिया जानेवाला संवाददाता का नाम।

प्रश्नः 110.
कॉलम रूल किसे कहते हैं?
उत्तरः
दो कॉलमों के मध्य खड़ी पतली रेखा को।

प्रश्नः 111.
समाचार-पत्र में कैप्सन का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
चित्र परिचय।

प्रश्नः 112.
समाचार-पत्र में क्रेडिट लाइन का क्या अभिप्राय है?
उत्तरः
संवाद सूत्र का उल्लेख।

प्रश्नः 113.
समाचार-पत्र में ‘क्रॉस लाइन’ किसे कहते हैं?
उत्तरः
एक पंक्ति के लघु शीर्षक को।

प्रश्नः 114.
किसी समाचार को किसी विशेष नीति, मत या उद्देश्य के अनुरूप प्रस्तुत करना क्या कहलाता है?
उत्तरः
स्लॉट।

प्रश्नः 115.
‘लीड’ शब्द किस कोटि के समाचारों के लिए प्रयुक्त होता है?
उत्तरः
प्रथम कोटि के समाचारों के लिए।

प्रश्नः 116.
वह समाचार जो मुख्य पृष्ठ के बाईं ओर ऊपर सबसे मोटे शीर्षक में दिया जाता है, वह समाचार क्या कहलाता है?
उत्तरः
प्रथम लीड।

प्रश्नः 117.
बॉक्स में प्रकाशित की जानेवाली खबरों में किस प्रकार के शीर्षक का उपयोग होता है?
उत्तरः
शीर्षक ढका हुआ, काया ढका और शीर्षक खुला, शीर्षक और काया पूर्णरूपेण आवृत।

प्रश्नः 118.
समाचार-पत्र के पृष्ठ का प्रिंट ऑर्डर देते समय किस बात का विशेष ध्यान रखना होता है?
उत्तरः
डेड लाइन (दिनांक रेखा), महीना, वर्ष, पृष्ठ संख्या, शेषांश।

प्रश्नः 119.
संपादकीय विभाग का कार्य क्या नहीं है?
उत्तरः
समाचार-पत्रों का वितरण।

प्रश्नः 120.
‘लीड’ से संबंधित महत्त्वपूर्ण तत्व क्या हैं?
उत्तरः
समाचार की भीषणता, समाचार का व्यापक प्रभाव, समाचार का राजनीतिक महत्त्व।

प्रश्नः 121.
किसी समाचार के संपादन के लिए जो पांडुलिपि मिलती है, उसे प्रेस की भाषा में क्या कहते हैं?
उत्तरः
कॉपी।

प्रश्नः 122.
विकासोन्मुख समाचार क्या होता है?
उत्तरः
समाचार एक के बाद एक कड़ियों के रूप में प्राप्त होते हैं।

प्रश्नः 123.
बॉक्स में किस प्रकार की खबरें प्रकाशित की जाती हैं?
उत्तरः
मानवीय रुचिवाले हास्यास्पद, अनोखे, भीषण, चुटिले तथा अप्रत्याशित खबरें।

प्रश्नः 124.
जेम्स गोरडन बेनट ने किसे ‘आधा राजदूत तथा आधा गुप्तचर’ कहा है?
उत्तरः
विशेष संवाददाता को।

प्रश्नः 125.
समाचार सामान्यतया कितने प्वाइंट तक के टाइप में दिए जाते हैं?
उत्तरः
10 से 12 प्वाइंट तक।

प्रश्नः 126.
समाचार-पत्र के मुख्य पृष्ठ पर सबसे ऊपर आठ कॉलम में फैले हुए मोटे टाइप में जो शीर्षक दिया जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तरः
पताका (Banner)।

प्रश्नः 127.
समाचार-पत्र में ‘स्टोरी’ शब्द का अभिप्राय क्या है?
उत्तरः
समाचार।

प्रश्नः 128.
समाचार-पत्र के किस पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ।

प्रश्नः 129.
समाचार-पत्र का कौन-सा पृष्ठ सर्वाधिक गंभीर माना जाता है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ।

प्रश्नः 130.
सामान्यतः किस दिन संपादकीय नहीं छापा जाता है?
उत्तरः
रविवार।

प्रश्नः 131.
भारत में संपादकीय को क्या कहा जाता है?
उत्तरः
समाचार की आवाज़।

प्रश्नः 132.
संपादकीय का उद्देश्य क्या है?
उत्तरः
संपादकीय का उद्देश्य किसी विषय-विशेष पर अपने विचार पाठक तक पहुँचाना है।

प्रश्नः 133.
संपादकीय लिखते समय सबसे पहले क्या तय करना चाहिए?
उत्तरः
संपादकीय का विषय ।

प्रश्नः 134.
संपादकीय में घिसे-पिटे मुहावरों का प्रयोग क्या दर्शाता है?
उत्तरः
संपादक की शब्द दरिद्रता।।

प्रश्नः 135.
दैनिक समाचार-पत्रों में संपादकीय पृष्ठ कहाँ होता है?
उत्तरः
मध्य में।

प्रश्नः 136.
संपादक मुख्य रूप से किसके प्रति उत्तरदायी होता है?
उत्तरः
पत्रमालिक के प्रति।

प्रश्नः 137.
सामान्यतः संपादक के नाम पत्र कौन लिखते हैं?
उत्तरः
जागरूक पाठक।

प्रश्नः 138.
समाचार-पत्र का कौन-सा पृष्ठ को प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ की मान्यता दिलाने में सहायक रहा है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ।

प्रश्नः 139.
संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या होता है?
उत्तरः
संपादकीय लेख, संपादक के नाम पत्र आदि।

पाठं से संवाद

प्रश्नः 1.
किसी भी दैनिक अखबार में राजनीतिक खबरें ज्यादा स्थान क्यों घेरती हैं? इस पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
किसी भी दैनिक अखबार में राजनीतिक खबरें ज़्यादा स्थान घेरती हैं क्योंकि इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण राजनीतिक दलों की भरमार है। सत्ता में बैठा दल अपनी नीतियों का गुणगान करता है तो विपक्षी दल उनकी आलोचना करते हैं। आम जनता भी किसी-न-किसी दल से जुड़ी होती है। निष्पक्ष व्यक्ति भी दोनों की बातें सुनना व पढ़ना चाहता है। इसलिए पाठकों की रुचि के अनुसार खबरें छपती हैं।

प्रश्नः 2.
किन्हीं तीन हिंदी समाचारपत्रों (एक ही तारीख के) को ध्यान से पढ़िए और बताइए कि एक आम आदमी की जिंदगी में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली खबरें समाचारपत्रों में कहाँ और कितना स्थान पाती हैं।
उत्तरः
हमने दिनाँक 25 फरवरी, 2017 को दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण व अमर उजाला समाचारपत्रों को पढ़ा जिसमें आम आदमी की जिंदगी में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली खबरें पहले, तीसरे व अंतिम पृष्ठ पर स्थान पाती हैं। शेष पृष्ठों पर सरकारी निर्णय, पक्ष-विपक्ष का प्रदर्शन, खेल, संपादकीय आदि जानकारी होती है।

प्रश्नः 3.
निम्न में से किसे आप समाचार कहना पसंद नहीं करेंगे और क्यों?
(क) प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना
(ख) किसी घटना की रिपोर्ट
(ग) समय पर दी जाने वाली हर सूचना
(घ) सहकर्मियों का आपसी कुशलक्षेम या किसी मित्र की शादी
उत्तरः
इसमें (घ) सहकर्मियों का आपसी कुशलक्षेम या मित्र की शादी को खबर नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह सामान्य जन से संबंधित नहीं है। इसमें व्यक्तिगत जानकारी है। खबर वह होती है जिसमें लोगों की रुचि है तथा उसका प्रभाव एक बड़े क्षेत्र पर पड़ता हो।

प्रश्नः 4.
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि खबरों को बनाते समय जनता की रुचि का ध्यान रखा जाता है। इसके विपरीत जनता की रुचि बनाने बिगाड़ने में खबरों का क्या योगदान होता है? विचार करें।
उत्तरः
जनता की रुचि बनाने-बिगाड़ने में खबरों की अहम् भूमिका होती है। बाजारीकरण के कारण उत्पादों की विशेषताओं का गुणगान करने से आम व्यक्ति बिना ज़रूरत के भी उसकी खरीददारी करता है। जाति, धर्म, क्षेत्र से संबंधित खबरों को चटखारेदार बनाने के लिए झूठ का सहारा लिया जाता है। मीडिया अपने मुनाफे के लिए गलत सर्वे पेश करता है। चुनाव में इसका रूप देखने को मिलता है।

प्रश्नः 5.
निम्न पंक्तियों की व्याख्या करें
(क) इस दौर में समाचार मीडिया बाज़ार को हड़पने के लिए अधिकाधिक लोगों का मनोरंजन तो कर रहा है। लेकिन जनता के मूल सरोकार को दरकिनार करता जा रहा है।
(ख) समाचार मीडिया के प्रबंधक बहुत समय तक इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते कि साख और प्रभाव समाचार मीडिया की सबसे बड़ी ताकत होती हैं। –
उत्तरः
(क) इन पंक्तियों में समाचार मीडिया की वर्तमान कार्य-प्रणाली पर असंतोष प्रकट किया गया है। आज मीडिया बाजार को
हड़पने के लिए अधिक चिंतित रहता है। वह अपने लक्ष्य से भटकता जा रहा है। वह सामान्य लोगों के हितों की परवाह नहीं कर रहा है।
(ख) समाचार मीडिया के प्रबंधकों को अपनी साख और प्रभाव को बनाए रखने के प्रयास करने होंगे। इन्हीं से मीडिया ताकतवर बनती है। वे इन तथ्यों की अनदेखी नहीं कर सकते। साख और प्रभाव के बिना मीडिया शक्तिहीन होकर रह जाता है।

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